सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

राम के अलावा इन तीनों ने भी तोडा था रावण का अभिमान.......

राम के अलावा इन तीनों ने भी तोडा था रावण का अभिमान।

रामायण के विभिन्न उपप्रसंगो के अनुसार रावण को ब्रम्हा जी का प्रपौत्र माना गया है रावण उच्चस्तरीय कुल के ब्राम्हण पिता और राक्षस कुल में जन्मी माता की संतान था।इस बात का उसे बड़ा अभिमान था साथ ही तपस्या कर उसने विभिन्न शक्तियां भी प्राप्त कर ली थी। तुलसीदास जी ने भी रावण का सबसे बड़ा अवगुण अभिमान को ही माना है।सत्य ही कहा गया है कि घमंड का कोई अंत नहीं होता पर घमंडी का अंत जरूर होता है ,तभी तो महान ज्ञानी रावण भी उसके प्रभाव से अपने आप को दूर नहीं रख सका ।
रावण के जीवनकाल में ऐसे कई प्रसंग आए जब उसका अभिमान कई बलशाली योद्धाओं ने चूर चूर किया ।
1. सहस्त्रबाहु अर्जुन -एक बार सहस्त्रबाहु अर्जुन(हजार भुजाओं के कारण उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा) ने नदी का प्रवाह रोक दिया इस बात से क्रोधित होकर युवा रावण ने उसे युद्ध हेतु ललकारा,युद्ध में रावण पराजित हुआ और सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को कैद कर लिया बाद में रावण के पितामह के कहने पर छोड दिया,अपने अहंकार के कारण रावण को भारी अपमान का सामना करना पड़ा।
कालांतर में सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध भगवान विष्णु के छठवे अवतार श्री परशुराम ने किया।

2.वानरराज बाली-एक बार वानरराज बाली वन में तपस्या में बैठे थे तभी वहां से रावण गुजरा । रावण को अपने बल और तपस्या से प्राप्त सिद्धियों पर अभिमान तो था ही उसने सोचा कि यह वानर उसे प्रणाम क्यों नहीं कर रहा है अभिमान से लबालब और अपमान से क्रोधित होकर उसने वानरराज बाली पर प्रहार कर दिया इसके कारण दोनों में युद्ध हुआ बाली ने रावण को हरा कर अपने भुजा के बगल में दबा लिया और लगभग छः माह बाद रावण को मुक्त किया।

3.दानवराज बलि-महान भक्त प्रह्लाद के पोते और सुतल लोक के स्वामी राजा बलि बड़े ही नारायण भक्त,पराक्रमी और महानदानी थे उनके दान करने की प्रवत्ति के कारण ही स्वयं नारायण उनके द्वारपाल बने।घमंड में चूर रावण ने उन्हें भी सुतल लोक जा कर युद्ध के लिए चुनौती देने पहुँच गया किंतु द्वारपाल श्री नारायण के कहने पर बलि का युद्ध कवच भी ना उठा पाने के कारण अपमानित होकर चला गया।
कई बार हार होने पर भी रावण के प्रयासों और घमंड का कोई अंत नहीं हुआ और वह हर बार कई गुना तप कर बलशाली होता गया अंत में श्री नारायण ने राम अवतार लेकर उसका वध किया।

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