मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

प्रभु के अकिंचन भक्त राका वाका

प्रभु के अकिंचन भक्त रॉका वाका:-
एक समय की बात है धरती पर पति पत्नी का एक जोड़ा रहता था उनका नाम था रॉका वाका। दोनों भगवान् के बहोत ही अकिंचन भक्त थे। जंगल से लकड़ी ला कर उसे शहर में बेचते थे और उससे जो धन प्राप्त होता उससे अपनी आजीविका चलाते थे। एक बार लक्ष्मी जी को उनकी निर्धनता पर दया आ गई और वो श्री विष्णु जी से बोली की ये पति पत्नी आप के परम भक्त है पर इनकी ऐसी दशा क्यों है और आप इनकी कोई सहायता क्यों नहीं करते है तब भगवान् ने कहा देवी मै इनकी सहायता करने को हमेशा तैयार रहता हु पर ये मेरी सहायता स्वीकार ही नहीं करते, यह सुन कर लक्ष्मी जी को आश्चर्य हुआ और बोली के प्रभु अगर आप आज्ञा दे तो मै कुछ सहायता करू तो भगवान् ने कहा ठीक है देवी आप भी सहायता कर के देख लीजिये। फिर एक दिन जब दोनों पति पत्नी जंगल को लकड़ी लेने गय तब लक्ष्मी जी ने यह सोच कर की दोनों पति पत्नी को ज्यादा मेहनत न करना पड़े जंगल की सारी सुखी लकडियो को एकत्रित कर एक स्थान पर इकठ्ठा कर दिया । जब पति पत्नी जंगल लकड़ी लेने पहुचे तब उन्हें बहोत आश्चर्य हुआ की जंगल में कही भी सुखी लकडिया नहीं है और जो है वो एक स्थान पर इकठ्ठा रक्खी हुई है यह देख कर दोनों को आश्चर्य हुआ और उन्होंने सोचा की शायद किसी अन्य लकड़हारे ने ये लकडिया इकठ्ठा की होंगी इन लकडियो पर हमारा अधिकार नहीं हो सकता और दोनों बिना लकड़ियां लिए घर चले गय और उन्हें भूखा ही सोना पड़ा। यह सब देख कर लक्ष्मी जी को बहोत आश्चर्य हुआ के बिना मेहनत के लकड़ियां इनको मिल रही थी पर इन्होंने केवल इस कारन की ये लकड़ियां उन्होंने अपने मेहनत से इकठ्ठा नहीं की है उसे ग्रहण नहीं किया।

फिर एक दिन जब दोनों लकड़िया लेने जंगल को जा रहे थे तब लक्ष्मी जी ने उनके रास्ते में धन से भरा एक पत्र रख दिया ताकि उनकी दृष्टि उस पात्र पर पड़े और वो उस धन को ले कर अपना बाकी का जीवन सुख से बीत सके। तभी जंगल के मार्ग में पति ने धन से भरा हुआ पात्र को देखा और ये सोच कर की कही धन से भरा पात्र देख कर पत्नी विचलित न हो जाय उस पर मिट्टी डालने लगे तभी अचानक पत्नी की नजर पति पर पड़ी और पत्नी बोली के हे पति देव आप इस मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे है तब पति ने पत्नी से कहा की वाह देवी मैने तो इस धन पर तुम्हारी दृष्टि न पड़े और तुम विचलित न हो जाओ समझ कर मिट्टी डाल रहा था पर धन्य हो तुम जिसे ये धन से भरा पात्र मिट्टी नजर आता है तब पत्नी ने कहा की ऐसा धन जो हमने अपनी मेहनत से न पाया हो वो मिट्टी के सामान ही है और पति पत्नी दोनों उस धन से भरे पात्र को वही छोड़ कर जंगल की ओर चल पड़े। ये दृश्य जब लक्ष्मी जी ने देखा तब श्री विष्णु जी से बोली की धन्य है प्रभु आप के भक्त जो अपने जीवन में निर्धनता स्वीकार करते है पर किसी के द्वारा दिया गया या पाया गया धन स्वीकार नहीं करते और ऐसे ही अकिंचन है आप के ये भक्त राका वाका।

आज के इस युग में जब लोग भ्रष्टाचार और गलत तरीको से धन कमाने में लगे हुए है और धन के लिए अपने रिश्तों को भी ताक पर रख जाते है उन सब के लिए ये दृष्टान्त प्रेरणा स्रोत है की हम अपनी मेहनत से कमाय हुए धन को ही अपना समझे और उसी से अपनी आजीविका का साधन करे। जो धन हमने अपनी मेहनत से नहीं कमाया है अगर वो बिना परिश्रम के मिल भी जाय तो उसे मिट्टीके सामान समझ कर अस्वीकार कर देना चाहिए।


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13 टिप्‍पणियां:

  1. Bhut accha bhaiya y ek aapke dwara liya gya bhut accha decision h isse ssmaj ko ek nai disha milegi

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    1. धन्यवाद भाई बस आप सभी का सहयोग रहे तो और भी अच्छा प्रयास रहेगा हमारा।

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    2. धन्यवाद भाई बस आप सभी का सहयोग रहे तो और भी अच्छा प्रयास रहेगा हमारा।

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  2. Bhut accha bhaiya y ek aapke dwara liya gya bhut accha decision h isse ssmaj ko ek nai disha milegi

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  3. सार्थक प्रयास। बहुत बहुत बधाई।

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  4. सार्थक प्रयास। बहुत बहुत बधाई।

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  5. सराहनीय पहल। हिन्दू जागेगा भारत बढेगा। जय हिन्द।

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  6. सराहनीय पहल। हिन्दू जागेगा भारत बढेगा। जय हिन्द।

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