जानिये चँद्रमा में दाग का पौराणिक कारण ?
एक बार की बात है श्री गणेश जी रात्रि के समय किसी जगह भोजन पाने गए थे। वहां भोजन करते समय उन्होंने मोदक और लड्डू का भोग लगाया और भोग लगाते लगाते उन्होंने इतना खा लिया की उनका उदर (पेट) अधिक लड्डू खाने की वजह से बहार निकल आया यह सब दृश्य चन्द्रमा आकाश से देख रहा था और हँस रहा था। फिर गणेश जी जब अपने घर वापस जाने लगे तब अपने वाहन मूषक पर भी बैठ नहीं पा रहे थे यह देख कर चँद्रमा और जोर से पेट पकड़ कर हँसने लगा। जब गणेश जी ने देखा की चँद्रमा उनपर हँस रहा है तब उन्होंने चँद्रमा को श्राप दिया की हे देहाभिमानि चंद्र तुमको अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड है तो जाओ तुम कान्तिहीन हो जाओ। गणेश जी के श्राप से चँद्रमा काल पड़ गया।
पग खम्भा सा उदर पुष्ट है देख चँद्रमा हास्य करे।
देय श्राप श्री चंद्रदेव को कलाहीन तत्काल करे।।
फिर चँद्रमा ने गणेश जी से क्षमा प्राथना की तब गणेश जी ने चँद्रमा की कान्ति लौटाई परंतु आज भी चँद्रमा पर काले धब्बे देखे जा सकते है।
इस प्रसंग के माध्यम से हमें सिख ये मिलती है की इंसान को कभी भी देह की सुंदरता का अभिमान नहीं करना चाहिए। किसी की भी काय या शारीरिक संरचना की हंसी नहीं उड़ान चाहिए। यदि हम सुंदरता का अभिमान करेंगे तो चँद्रमा की भाँति अपयश ही प्राप्त होगा और ईश्वर के कोप का भाजन होना पड़ेगा।
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पग खम्भा सा उदर पुष्ट है देख चँद्रमा हास्य करे।
देय श्राप श्री चंद्रदेव को कलाहीन तत्काल करे।।
फिर चँद्रमा ने गणेश जी से क्षमा प्राथना की तब गणेश जी ने चँद्रमा की कान्ति लौटाई परंतु आज भी चँद्रमा पर काले धब्बे देखे जा सकते है।
इस प्रसंग के माध्यम से हमें सिख ये मिलती है की इंसान को कभी भी देह की सुंदरता का अभिमान नहीं करना चाहिए। किसी की भी काय या शारीरिक संरचना की हंसी नहीं उड़ान चाहिए। यदि हम सुंदरता का अभिमान करेंगे तो चँद्रमा की भाँति अपयश ही प्राप्त होगा और ईश्वर के कोप का भाजन होना पड़ेगा।
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