जानिये कैसे श्रीकृष्ण ने किया ब्रह्मा जी का मोह भंग ?
द्वापर युग में जब भगवान् विष्णु ने श्री कृष्णा अवतार लिया था तब एक बार वे गौ चारन को अपने बाल सखाओ के साथ गए। गौ चारन करते करते भगवान् गायो को स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ देते है और स्वयं अपने बाल सखाओ के साथ क्रीड़ा करने लगते है।
क्रीड़ा करते करते जब प्रभु को भूख लगती है तब वे श्रीदामा आदि अपने बाल सखाओ के साथ भोजन को गोल मंडली बना कर बैठ जाते है और सभी सखा एक दूसरे की पोटली से खाद्य पदार्थ निकाल कर खाने लगते है ।
ये सारा दृश्य जब ब्रह्मा जी ने देखा तब उन्हें घोर आश्चर्य हुआ के तीनो लोग के स्वामी धरती पर जा कर गायो के पीछे पीछे भार रहा है गायो की धूलि अपने शरीर पर लगाकर विभोर हो रहा है। अहीर जाती के बालको के साथ मंडली बना कर क्रीड़ा करता है और उनके द्वारा लाई गई भोजन के जूठन को बड़े ही आनंद से खा रहा है।
तब ब्रह्मा जी ने सोचा की क्यों न परीक्षा ले कर देखा जाय और ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण के साथ आए सारे ग्वाल बालो और गायो का हरण कर लिया और ब्रह्म लोक ले गय। तब श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी का मोह भंग करने के लिए लीला रचि और जिन ग्वाल बालो और गायो को ब्रह्मा जी ने हरण कर लिया था उनके रूप धारण कर लिए और इस तरह से एक वर्ष तक श्री कृष्ण अनेक रूप धारण कर लीला करते रहे उधर ब्रह्मा जी ने जब देखा के जिन ग्वाल बालो और गायो का उन्होंने हरण किया है वो सभी पृथ्वी पर भी है और उनके ब्रह्म लोग में भी तब ब्रह्मा जी का मोह भंग हुआ और वे अपने किये हुए कर्म पर बड़े ही लज्जित हुए फिर ब्रह्मा जी सारे ग्वाल बालो और गायो सहित भगवान् के सम्मुख प्रगट हुए और भगवान् से क्षमा प्राथना कर स्तुति की।
तब भगवान् से अपने ग्वाल बालो और गायो को सम्मुख पा कर अपने लीला के लिए प्रकट किये हुए ग्वाल बाल और गाय स्वरुप को अंतर्ध्यान किए और ब्रह्मा जी पर क्रुद्ध हो कर कहा की जब आप सृष्टि के रचयिता हो कर जीव-जीव में भेद भाव करेंगे तब सृस्टि का क्रम कैसे चलेगा। सभी की आत्मा में वो परमात्मा सामान रूप से विद्यमान है फिर चाहे वो मनुष्य हो या पशु, ऊची जाती का हो या निम्न जाती का, अमीर हो या गरीब किसी के साथ भी भेद भाव की दृष्टि नहीं रखनी चाहिए और सब जीवो के भीतर सामान भाव से उस परमात्मा का दर्शन करना चाहिए क्योकि वही सर्व व्यापक है और सर्वत्र विद्यमान है।
इतना सब सुन कर ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण की ग्यारह श्लोको में स्तुति की और अपने ब्रह्म लोक को लौट गए। यह दृष्टान्त आज के युग के लिए सीख है की हमें किसी भी तरह की जातिगत, वर्ण या धर्म आधारित भेद भाव न करते हुए सभी का सम्मान करना चाहिए सभी को सामान भाव से देखना चाहिए ।
ईश्वर अंश जीव अविनाशी।
सभी जीव ईश्वर के ही अंश है और किसी भी जीव का अपमान करना भगवान् का अपमान करना होता है।
ज्ञानप्रद।
जवाब देंहटाएंज्ञानप्रद।
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