शनिवार, 12 नवंबर 2016

भगवान् विचार पूर्वक धन देते है जाने कैसे?

भगवान विचार पूर्वक धन देते है जाने कैसे !!!

भगवान सर्व समर्थ है। भगवान् के लिए कुछ भी अदेय नहीं है। पर मनुष्य को भगवान् से कुछ माँगना अयोग्य नहीं तो योग्य भी नहीं है। भगवान् सब कुछ दे सकते है। परंतु भगवान् हमें जो देते है बहुत ही विचारपूर्वक देते है। भगवान् किसी को कम अथवा किसी को अधिक नहीं देते। भगवान् हमारी क्षमता के अनुसार हमारी योग्यता के अनुसार देते है। 

आइये इसे एक दृष्टान्त के माध्यम से समझे:-
हमारे इस संसार में सबसे कम स्वार्थ का रिश्ता यदि कोई है तो वो माँ और बेटे का रिश्ता है। माँ अपने बेटे से निष्काम प्रेम करती है और उसके जरुरत का हमेशा ध्यान रखती है। माँ को ये पता होता है की बच्चे को कब किस वस्तु की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए बच्चे की यदि तबियत खराब है तब माँ उसे कुछ भी ऐसा खाद्य नहीं देती जिससे बच्चे की सेहत खराब हो फिर चाहे लाख बच्चा उस खाद्य के लिए ज़िद्द करे। माँ को पता है की उस खाद्य से बच्चे का सेहत खराब हो जायगा पर यदि कोई बच्चा ये समझ ले की माँ उस से प्यार नहीं करती तो ये बात गलत है क्योकि माँ उसे उस नुक्शानदायक खाद्य से बचने के लिए उस खाद्य को नहीं देती  पर उसके स्वास्थ्य के अनुकूल खाद्य अवश्य देती है ताकि बच्चा जल्दी स्वस्थ हो जाय।

इसी प्रकार भगवान् भी हमें हमारी क्षमता के आधार पर हमें लौकिक वस्तुऍ प्रदान करते है। यदि भगवान् ने हमें कम दिया है तो अपने आप को ऐसे समझाओ की भगवान् ने हमें विचारपूर्वक कम दिया है। यदि मुझे अधिक धन मिल जाता तो कदाचित मेरी बुद्धि बिगड़ जाती और मै गलत कार्यो में लिप्त हो अपनी क्षति कर लेता। मेरे भगवान् बहुत उदार है और मुझ बालक पर अनुग्रह कर मेरी हितो को ध्यान में रख कर जो दिया है बस उसी में संतोष करना चाहिए। तब मनुष्य कभी दुखी नहीं होगा। 

जिसे भगवान् ने बहुत सा धन सम्पदा दिया है तो उसे उस धन सम्पदा को जरूरतमंदों के लिए व्यय करना चाहिए भगवान् ने आप को योग्य समझ कर दिया है तो आप को उस धन का सार्थक उपयोग कर अपनी योग्यता सिद्ध करनी चाहिए। 

अधिक धन वाले व्यक्ति अपने धन का सदुपयोग गरीब कन्याओ का विवाह करा कर, गरीबो को भोजन करा कर, गरीब बच्चों के अध्ययन की व्यवस्था करा के, मंदिर और यज्ञ आदि पुण्य कर्म कर के, विकलांगो की सेवा करके, प्याऊ बना कर, नित्य साधू संतो की सेवा कर करना चाहिए।



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