मंगलवार, 15 नवंबर 2016

परोपकार का ना हो अहंकार!! सीखे श्रीराम से।

ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या पतिश्राप के कारण एक निर्जन वन में जहा जीव जंतु किसी का भी आना जाना नहीं था वहा अकेली शिला स्वरूप रहती थी। जब विश्वामित्र जी अपने यज्ञ रक्षा के लिए श्रीराम और लक्ष्मण जी को अपने साथ ले जा रहे थे तब माता अहिल्या के उद्धार के लिए श्री राम को उस निर्जन स्थान में ले गए। वहा जा कर श्रीराम ने शिला स्वरुप माता अहिल्या को देखा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ तब ऋषि विश्वामित्र ने सारा वृत्तांत सुनाया की कैसे गौतम पत्नी अहिल्या शिला बनि। वृत्तांत सुनाने के बाद विश्वामित्र ने श्री राम से कहा की आप अपने चरण इस शिला पर स्पर्श कराइये तो इसकी मुक्ति होगी। भगवान् ने ऐसा ही किया और उनके चरण स्पर्श कराते ही माता अहिल्या शिला रूप को त्याग कर दिव्य रूप में प्रकट हो गई और भगवान् की स्तुति कर अपने पति लोग को चली गई। इस घटना के बाद भगवान् श्री राम को बहुत ग्लानि हुई की आज हमें एक ब्राह्मण स्त्री को अपने चरण से स्पर्श करना पड़ा।

मित्रो आज यदि हम किसी के उपर कोई अहसान करते है तो उसे हर जगह बताते फिरते है। जिसके ऊपर अहसान किया है उसे बार बार यह जताने का प्रयास करते है की हमने तुम पर अहसान किया है पर धन्य है श्रीराम जिन्होंने शिला स्वरुप माता अहिल्या का उद्धार करके भी आत्मग्लानि प्रकट कर रहे है की आज हमने एक ऋषिपत्नी को अपने चरण का स्पर्श कराया।
ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरणों में हम बारम्बार प्रणाम करते है।
परोपकार का ना हो अहंकार!! सीखे श्रीराम से।

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