शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

श्रेय और प्रेय क्या है?

वेदों में दो शब्द आते है- श्रेय और प्रेय। आइये जाने इनका वास्तविक अर्थ क्या है:-

प्रेय क्या है? - जो थोड़े जीवो को प्रिय लगता है, थोड़े समय के लिए प्रिय लगता है उसके बाद उसमे अरुचि हो जाती है उसे प्रेय कहते है। सांसारिक सुख, या कहे माया जनित सांसारिक सुख थोड़े लोगो को प्रिय होता है, सांसारिक सुख थोड़े समय के लिए होता है फिर सांसारिक  सुखो में अरुचि हो जाती है और उनसे दुःख मिलने लगता है। अतः भगवान् की माया , या कहे माया जनित सांसारिक सुख प्रेय है।

श्रेय क्या है? - जो सबको प्रिय है, जो सर्वकाल प्रिय है, जिसमे किसी की भी अरुचि नहीं होती उसे श्रेय कहते है। आनंद सभी को प्रिय होता है आनंद सभी को चाहिए, आनंद से किसी को अरुचि नहीं होती अतः आनंद ही श्रेय है और आनंद स्वरुप स्वयं भगवान् सद्चिदानंद श्री कृष्ण है  अतः वही हमारे श्रेय है।

हम सांसारिक मनुष्य धन को ही आनंद मान लेते है, पर उन लोगो से पूछ कर देखिये की क्या उन धनि लोगो के सभी दुःख दूर हुए क्या उनके जीवन में शान्ति है आप को जवाब मिलेगा नहीं क्योकि धन प्राप्ति से उनकी इच्छाये और बलवती होती है और वह फिर अपनी कामनापूर्ति के लिए प्रयास करने लगता है और अपने आप को अशांत कर बैठता है और कामना पूर्ति न होने पर वही दुःख का कारण बनता है। तो धन की प्राप्ति से आंशिक दुःख की नृवित्ति तो हो जाती है पर आनंद की प्राप्ति नहीं होती। 

आनंद स्वरूप तो केवल श्री कृष्ण है जो भक्ति के द्वारा प्राप्त होते है और उनकी प्राप्ति के बाद एक ऐसा आनंद मिलता है जो सदा के लिए होता है अनंत मात्र का होता है। अतः यदि मनुष्य को वास्तविक आनंद चाहिए तो सांसारिक माया मोह को त्याग कर निष्काम भक्ति कर श्री कृष्ण रुपी सद्चिदानंद को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।




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