गुरुवार, 17 नवंबर 2016

कुब्जा कौन है?

श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंद में हमने कुब्जा की कथा श्रवण की है। उस कथा पर चिंतन करने के बाद हमें हमारी बुद्धि ही कुब्जा रूप में दिखाई पड़ती है। कुब्जा शब्द का अर्थ होता है उल्टा, टेढ़ी चाल वाला या वक्र चाल वाला। वास्तव में रामायण में भी कुब्जा का स्वरुप अगर हम देखना चाहे तो वह हमें  वह मंथरा रूप में कैकेई की मति स्वरुप दिखाई पड़ती है।

जिस प्रकार कुब्जा जब तक पापी कंश की सेवा करती रही तब तक वह वक्र चाल वाली और टेढ़े शरीर वाली बनी रही। इसी प्रकार जब तक हमारी बुद्धि भी इस संसार रुपी मायाजाल की सेवा करती है और अपने इन्द्रियों के भोग में लगी रहती है तब तक हमारी मति वक्र रहती है और वास्तविक आनद से परे रह कर सांसारिक सुखो में ही आंनद को ढूंढती है। 

जिस प्रकार कुब्जा श्री कृष्ण से मिलने के बाद अपने वास्त्विक स्वरुप को जान कर कंस की सेवा छोड़ कर और श्री कृष्ण भक्ति कर मोक्ष को प्राप्त करती है उसी प्रकार जब हमारी माति भी इस लौकिक सांसरीक सुखो को त्याग कर भगवत भक्ति की और प्रेरित होता है तब उसकी बुद्धि शुद्ध बुद्ध हो कर भगवत भक्ति में लिप्त हो उस परम आनंद को प्राप्त कर लेती है।

इसलिए ये बुद्धि तब तक कुब्जा के सामान है जब तक है भगवान् से विमुख है। हम जैसे ही भगवान् के सम्मुख होते है हमारी बुद्धि शुद्ध हो जाती है। अतः हमें सांसारिक सुखो को छोड़ उस परमात्मा की भक्ति के लिए अपनी कुब्जा बुद्धि को प्रेरित करना चाहिए।



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