गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

बालक नामदेव की अकिंचन भक्ति से मूर्ति स्वरुप भगवान् को भी प्रकट होना पड़ा!!


एक बार की बात है नामदेव की अवस्था 6 वर्ष के बालक की थी। उनके पिताजी को किसी कार्य से घर से बहार जाना पड़ा। जाने से पूर्व पिताजी ने नामदेव जी को समझाया की बेटे तुम मेरे नहीं रहने पर नित्य ठाकुर जी की सेवा किया करना। उनको स्नान कराना, सुन्दर वस्त्र आभूषण पहना, कर फूलो की माला पहनाकर फिर भोग लगाना और उनके भोग लगाने के बाद ही प्रसाद स्वरुप तुम भोजन करना। इतना कहकर पिताजी कुछ दिनों के लिए बाहर चले गए।

अब नामदेव जी छोटे से बालक ठहरे परंतु फिर भी पिताजी के आज्ञा अनुसार वो प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में जग कर नित्यकर्म से निर्वृत्त हो कर पूजन कक्ष में पहुचे और पूजन स्थान को शुद्ध कर वो भगवान् को स्नान कराय, फिर वस्त्र आभूषण पहना कर फूलो की माला पहना कर भोग लगाने लगे। भोग में उन्होंने एक कटोरी में खीर का प्रसाद लगाया। भोग लगाने के बाद नामदेव जी वही पर बैठ गए और देखने लगे कि प्रभु अब भोग लगाएंगे। परंतु मूर्तस्वरुप ठाकुर जी कहाँ भोग लगाने वाले थे। नामदेव जी के पिताजी भी नित्य भोग लगाकर प्रसाद खुद खा लेते थे पर ये बात उन्होंने नामदेव जी को नहीं बताई थी। नामदेव जी के मन में ये बात थी की पिताजी ने कहा है की ठाकुर जी को खिलाने के बाद ही खुद खाना तो नामदेव जी प्रतीक्षा करने लगे। 

जब कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद भी ठाकुर जी ने भोग नहीं लगाया तब नामदेव जी ने प्रार्थना प्रारम्भ की क़ि हे प्रभु मै एक अकिंचन छोटा सा बालक हु मैंने कमोवेश जैसे भी आपकी पूजा की है कृपया उसे स्वीकार करिये और मुझे अपना बालक जान कर मेरी गलतियों पर ध्यान ना देते हुए कृपया भोग ग्रहण कीजिये। इस तरह से बहुत समय बीत गया और नामदेव जी भूखे प्यासे पिता के वचनो पर विशवास कर ठाकुरजी के भोग लगाने की प्रतीक्षा करते रहे और अंत में नामदेव जी की इस अकिंचनता पर भक्त वत्सल प्रभु प्रसन्न हो कर उनको साक्षात दर्शन दिए और भोग लगाकर प्रसाद नामदेव जी को प्रदान किये।

इस प्रकार एक अकिंचन बालक नामदेवजी ने अपनी पिताजी के वचनो पर श्रद्धा दिखाते हुए भगवान् के प्रकट होकर भोग लगाने का विशवास लिए भूखे प्यासे रहे और भगवान् को भी उस नन्हे बालक के भाव के सामने मूर्ति से प्रकट होना पड़ा।

"हरि व्यापक सर्वत्र समाना" ये बात तो ठीक है पर वो प्रकट कैसे होते है तो "प्रेम ते प्रकट होही मय जाना"। प्रभु इस चराचर जगत में सर्वत्र व्याप्त है पर जहा आप की भावना बलवती हुई और आप का प्रेम जागृत हुआ वही भगवान् साक्षात प्रकट हो जाते है।



1 टिप्पणी: