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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

जब श्रीकृष्ण को एक गोपी ने रुलाया!

एक बार की बात है गोकुल में श्री कृष्ण एक गोपी के यहाँ माखन चुराने गए, जब श्री कृष्ण माखन चुरा रहे थे तब उस गोपी की दृष्टि श्री कृष्ण पर पड़ी और उस गोपी ने कन्हैया को पकड़ लिया और पूछने लगी की कन्हैया बता क्या चोरी करने आया था, तब कन्हैया ने कहा की कुछ नहीं बस भूख लगी थी तो माखन खाने चला आया। 


गोपी को तो पता ही था की कन्हैया माखन चुराने आया है तब उसने एक युक्ति सोची, और श्री कृष्ण से कहा की अगर माखन चाहिए तो कुछ काम करना पड़ेगा, तब कन्हैया ने कहा की बताओ क्या काम करना पड़ेगा, तब गोपी ने कहा की कन्हैया तुम जितने कुड़ी गोबर का गौशाला से बहार फेकोगे उतने लोंदे माखन तुमको खाने को दूंगी। कन्हैया को ये बात जाच गई, पर कन्हैया ने गोपी से कहा की न तो मै पड़ा लिखा हु और न ही तू पढ़ी लिखी है फिर हिसाब कौन रखेगा की कितने कुड़ी मैंने फेके और कितना माखन तुम मुझे दोगी। तब गोपी ने कहा की जितने लोंदे तू फेकेगा उतनी बार मै तेरे चेहरे पर गोबर का टिका लगा दिया करुँगी और जितने टीके तेरे चेहरे पर लगेंगे उतने लौंदे माखन तू ले लेना।


 कन्हैया को ये बात जम गई और वो एक एक करके गोबर की कूड़ी बहार फेकने लगे और गोपी एक एक करके कन्हैया के चेहरे पर गोबर का टिक लगाने लगी, इस तरह कन्हैया के चेहरे पर गोबर का टिक सर्वत्र नजर आने लगा। गोबर का कुड़ी फेकते फेकते कन्हैया को पसीना आ गया और अपने अंगवस्त्र से कन्हैया ने अपना चेहरा पोछा और चेहरा पोछते ही चेहरे में लगा सारा गोबर का टिका मिट गया।

फिर कन्हैया ने गोपी से कहा मैंने सारा गोबर गौशाला से बहार फेक दिया है अब मेरे चेहरे पर लगा गोबर का टिका एक एक करके मिटाते जाओ और माखन का लोंदा देते जाओ। गोपी ने जब कन्हैया के चेहरे को देखा तो वहां कोई गोबर का टिका नहीं था तब गोपी कन्हैया से बोली की तुम्हारे चेहरे का टिक तो मिट चूका है अब मै तुमको किस आधार पर माखन दूंगी। फिर क्या था गोपी के इन वचनो  को सुनते ही कन्हैया रोने लगे। ये देख कर गोपी को दया आ गई और कन्हैया के आँसु पोछकर माखन मिश्री खिलायी और कन्हैया अपने नन्द भवन को लौट गए।


इस दृष्टान्त का तात्पर्य यह है की कहा ब्रह्मा शंकर नारद आदि जिनके ध्यान में निरंतर लगे रहते है तब कही जा कर उनकी थोड़ी क्षटा दिखाई पड़ती है ऐसे श्री कृष्ण उस ब्रज की गोपियों को सहज ही प्राप्त है और प्राप्त ही नहीं बल्कि उनके साथ लौकिक लीलाए भी करते है। ये सभी भावनाओ की बात है गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम ही उन्हें आनंद की इस चरम सीमा की अनुभूति कराता है। गोपी प्रेम सर्वोत्कृष्ट है। आनंद स्वरुप भगवान् ही श्रीकृष्ण है और निष्काम विशुद्ध जीव ही गोपी है। अतः प्रत्येक जीव जो अपना कल्याण कहते है उनको गोपी भाव से ही श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम करना चाहिए।


जय श्रीकृष्ण!!






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