शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

जब कुत्ते से भगवान् को प्रकट होना पड़ा!!

एक बार की बात है नामदेव जी तीर्थ यात्रा पर निकले थे तो मार्ग में उन्होंने एक स्थान पर भोजन और विश्राम के लिए एक वृक्ष के नीचे अपना पड़ाव डाला। नामदेवजी प्रतिदिन जो भी भोजन बनाते पहले उसका भोग ठाकुर जी को लगाते थे उसके बाद स्वयं उसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते थे।उस दिन भी नामदेव जी रोटी बनाने लगे और रोटी बनाकर जैसे ही उन्होंने उसमे घी लगाने के लिए घी का पात्र लेने पलटे की उतने में एक कुत्ता आ कर उनकी रोटी ले कर भागा। कुत्ते को रोटी ले कर भागते देख कर नामदेव जी उस कुत्ते के पीछे घी का पात्र ले कर दौड़े। और चिल्ला कर बोलने लगे की हे ठाकुर जी ये रोटी मैंने आप ही के लिए बनाई थी अच्छा किया जो ले करके जा रहे है पर आपकी कृपा से घी भी है आप सुखी रोटी का भोग मत लगाइये घी लगा कर खाइये तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। बस फिर क्या था नामदेवजी की इस भावना से ठाकुर जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उस कुत्ते में से प्रकट हो गए और उस रोटी का भोग लगाया।

दृष्टान्त का तात्पर्य यह है की हम यदि कोई कार्य ठाकुरजी के निमित्त कर रहे है और उन पर हमें विशवास है की वो हमारी सेवा भाव को अवश्य स्वीकार करेंगे तब प्रभु किसी ना किसी रूप में आ कर उसे अवश्य ही ग्रहण करते है बस हमारे मन में नामदेवजी की भाँती अटल विशवास होना चाहिए की कैसे भी हो यदि हमने अपनी कोई सेवा ठाकुर जी को अर्पण की है तो भले ही वो पशु वेश में आय पर आएँगे जरूर। "सियाराम मय सब जग जानी" ये सारा संसार ही श्री सीताराम जी मय है और जो सच्चे भक्त होते है उनके नजर में चाहे मूर्ति हो या पशु सभी जगह उनके भगवान् ही नजर आते है और उनकी इसी श्रद्धा के परिणाम स्वरुप भगवान् को भी कुत्ते से प्रकट होना पड़ता है।



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