स्वास्थ्य

पृष्ठ

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

क्यों श्रीकृष्ण एक चींटी को देख कर हँस पड़े!!

एक बार की बात है श्रीकृष्ण द्वारिका स्थित रुक्मणि जी के महल में भोजन करने गए। श्रीकृष्ण भोजन करने आसन पर बैठे और रुक्मणि जी ने उन्हें भोजन परोसा। भगवान् भोजन करने लगे और रुक्मणि जी उन्हें पंखा करने लगी। तभी भगवान् की नजर जमीन पर पड़ी और उन्होंने एक चींटी को चलते हुए देखा। थोड़ी देर तक देखने के बाद भगवान् अचानक हँस पड़े। 

रुक्मणि जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि भगवान् अचानक भोजन करते हुए क्यों हँस पड़े? 

रुक्मणि जी ने अपने कोतुहल को शांत करने के लिए भगवान् से पूछ ही लिया कि भगवन आप भोजन करते हुए अचानक क्यों हँस पड़े?

श्रीकृष्ण ने रुक्मणि जी से कहा कि हे देवी आप जमीन पर चल रही इस चींटी को देख रही हो? 

रुक्मणि जी ने कहा हाँ प्रभु वो गुड़ के छोटे से टुकड़े को ले कर जा रही है पर इसमें हँसने की क्या बात है? 

भगवन ने कहा कि देवी ये चींटी आठ बार इन्द्र रह चुकी है बस यही सोच कर हँसी आ गई। 

तब रुक्मणि जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या कोई आठ बार इन्द्र रह कर भी चींटी की योनि में जन्म ले सकता है!! रुक्मणि जी ने श्रीकृष्ण से इस रहष्य को समझाने के लिए प्राथना की। 

भगवान् ने इसका रहष्य समझाते हुए कहा की हे देवी कोई इंसान कितना भी पाप अथवा पुण्य कर ले उसकी भगवत गति नहीं होती, जो इंसान पाप कर्म अधिक करता है तो उसकी अधोगति होती है और नरक मिलता है और पुण्य की अधिकता में स्वर्ग आदि लोगो के सुखो को भोगता है पाप और पुण्य की साम्यावस्था में मृत्यु लोग मिलता है। 

स्वर्ग या नरक ये सदा दिन नहीं रहते है पाप समाप्त होने पर अथवा पुण्य समाप्त होने पर वह पुनः इस इस मृत्यु लोक में आ कर विभिन्न योनियो में भटकता रहता है। ऐसा ही इस चींटी के साथ भी हुआ यह आठ बार इन्द्र के आसान में बैठ कर वहाँ के सारे सुखो का भोग किया परंतु फिर भी इसे विरक्ति नहीं हुई इसकी आशक्ति संसार में ही बनी रही और यह पुनः इस मृत्यु लोक में आ कर एक चींटी की योनि को प्राप्त हुआ। 

मनुष्य को जब तक संसार के सुखो में विरक्ति और भगवान् के प्रति अनुरक्ति रख कर भगवान् की भक्ति नहीं करेगा तब तक उसका कल्याण संभव नहीं है। अपने कल्याण चाहने वाले मनुष्यो को निष्काम कर्म योग का आश्रय ले कर भगवान् की भक्ति निरंतर करनी चाहिए तब उसे भगवत कृपा प्राप्त होगी और वह इस भवसागर से मुक्त हो उस दिव्यानंद परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त कर सकेगा।


यह भी पढ़े:-

जीवात्मा का वास्तविक स्वरुप क्या है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें