पद्म पुराण में एक कथा आती है कि माता पार्वति नित्य भोजन करने के पूर्व विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करती है उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती है। एक बार भोले बाबा ने माता पार्वति से कहा आओ देवी भोजन करते है तब माता पार्वति ने कहा की हे स्वामी अभी मैंने विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ नहीं किया है उसके पाठ किये बिना मैं भोजन ग्रहण नहीं करती। भगवान् शंकर ने कहा की हे देवी:-
"राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुलयं राम नाम वरानने।।"
राम राम राम ऐसा तीन बार उच्चारण करने से पूर्णता प्राप्त होती है। मैं सहस्त्र नाम के समान ही नित्य इसी राम नाम का स्मरण करके रमण करता हूँ। और आप भी राम नाम का उच्चारण करके भोजन ग्रहण कर लीजिये।तब माता पार्वति ने राम नाम लेकर भोजन किया और तब से नित्य राम नाम का ही जप माता पार्वति करती है।
मानस में भी गोस्वामीजी ने ये बात बालकाण्ड में कही है:-
"सहस नाम सम सुनि सिव बानी।
जपि जेई पिय संग भवानी।।"
राम नाम की महिमा सहस्त्र नाम जपने के समान है ऐसा शिव जी से सुन कर माता पार्वति शिवजी सहित नित्य राम नाम का जाप करती है।
दष्टान्त का तात्पर्य यह है की हमें नित्य श्री राम नाम का ही आश्रय लेकर अपने सारे कार्य करने चाहिए।
जीवात्मा का वास्तविक स्वरुप क्या है?
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