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शनिवार, 24 दिसंबर 2016

मन्त्र से श्रेष्ठ है नाम स्मरण जानिये कैसे!!

जप दो प्रकार का होता है एक मन्त्र-जप और दूसरा नाम-जप।

मन्त्र जप करने की विधि होती है परंतु नाम जप में किसी विधि की आवश्यकता नहीं है।

मन्त्र में नमन और स्वाहा होता है जबकि नाम में अपने इष्ट के प्रति सम्बोधन होता है।

मन्त्र जप हर समय नहीं किया जा सकता उसमें समय और स्थान का निषेध् होता है जबकि नाम जप हर समय और किसी भी स्थान में किया जा सकता है।

मन्त्र जप का अधिकार सभी को नहीं है जबकि नाम जप कोई भी कर सकता है।

मन्त्र जप अनुष्ठान पूर्वक किसी अभिष्ठ की प्राप्ति के लिए होता है जबकि नाम जप अंतःकरण की शुध्दि और भगवत प्राप्ति का प्रमुख साधन है।

मन्त्र जप कर्म प्रधान है जबकि नाम जप भाव प्रधान है।

मन्त्र जप में यदि त्रुटि हो जाय तो यजमान का नाश हो जाता है जबकि नाम जप में यदि त्रुटि हो भी जाय फिर भी वह कल्याणकारी ही होता है। उदाहरण के लिए:- वृत्तासुर इन्द्र के वध के लिए मन्त्र अनुष्ठान कराया पर मन्त्र की त्रुटि होने के कारण खुद वृत्तासुर का नाश हो गया जबकि नाम जप के प्रभाव से उल्टा नाम जब कर (मरा मरा कहकर) वाल्मीकि ब्रह्म ज्ञानी हुए।

इस प्रकार अनेक अंतर है नाम और मन्त्र जप में परंतु यहाँ नाम जप की महिमा बता कर मन्त्र जप का तिरिष्कार करने की बात नहीं कही जा रही है। कहने का भाव केवल यह है की नाम जाप भावनात्मकता के साथ कोई भी मनुष्य सहज सुलभ ले सकता है और किसी भी प्रकार से लिया जाय सीधा या उल्टा सही या गलत हर प्रकार से नाम जप कल्याणकारी होता है।



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