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रविवार, 25 दिसंबर 2016

शिवजी को भस्म क्यों भाता है?

एक बार की बात है शिवजी मृत्युलोक में विचरण कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक मरे हुए इंसान को शमसान की तरफ ले जा रहे थे और 'राम नाम सत्य है' का उच्चारण कर रहे थे। अब हमारे शिवजी को राम नाम परम प्रिय है, तो शिवजी भी उनके साथ समसान को जाने लगे। 

शमसान पहुचने के बाद उन्होंने देखा की सभी लोग अंतिम संस्कार करके अपने घरो को जाने लगे पर जाते समय कोई भी 'राम नाम सत्य है' का उच्चारण नहीं कर रहा था। शिवजी ने विविध रूप धारण कर उन सभी के साथ उनके घर तक गए पर कोई भी व्यक्ति राम नाम नहीं ले रहा है। 

तब शिवजी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस मुर्दे को ले जाते समय सभी राम नाम ले रहे थे पर उसके पञ्च तत्व में विलीन होने के बाद कोई राम नाम नहीं ले रहा है। शिवजी ने विचार किया कि कही न कही उस मुर्दे में ही कोई विशेषता रही होगी कि लोग राम नाम ले रहे थे।

 शिवजी पुनः शमसान पहुच गए और देखा तो वहा उस मुर्दे के जल जाने के बाद केवल उसकी राख बची हुई थी, सो उस मुर्दे को परम राम भक्त मान कर उसके चिताभस्म को अपने शरीर में धारण कर लिए। इस प्रकार शिवजी को राम नाम के साथ शमसान तक जाने वाले शरीर के चिता भस्म प्रिय है।

इस दृष्टान्त पर चर्चा करने का तात्पर्य यह है कि हम जानते है की राम का नाम सत्य है पर मानते नहीं और यदि मानते तो केवल शमसान जाते समय उनका नाम नहीं लेते वरन हर समय हर स्थान पर उनके नाम का स्मरण किया जाता। 

हम जब मृत्यु जैसे परम सत्य को देखते है तब हमें राम नाम की याद आती है पर यदि किसी के घर बालक का जन्म हो, विवाह हो या अन्य कोई मांगलिक कार्य हो  तब यदि कोई व्यकि 'राम नाम सत्य है' का उच्चारण कर दे तो ऐसा कहने वाले की दशा क्या होगी इसका अनुमान हम लगा सकते है।

 तो राम नाम अवसर देख कर सत्य है न मानते हुए राम नाम को नित्य निरंतर सत्य मानना चाहिए और यदि इस बात को अपने अंतर्मन में धारण कर लिया जाय तो मनुष्य कभी किसी गलत प्रवृत्ति की ओर नहीं बढेगा और निश्चय ही उसके कल्याण का मार्ग श्रीराम जी की कृपा से प्रशस्त होगा।



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