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गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

सिताराम तो सभी कहते है पर रामसिय किसने कहा!!

मानस के अयोध्याकाण्ड में एक  प्रसंग आता है श्रीराम जब माता सीता और भैया लक्ष्मण सहित वन में है यह बात जानकार भारत जी उन्हें वापस अयोध्या लाने के लिए अयोध्यावासियों को साथ ले कर गए। मार्ग में जब प्रयाग में उनका प्रवेश हो रहा था तब उनके मन की अन्तर्दशा यह थी की वे सिताराम की जगह रामसिय नाम का उच्चारण कर रहे थे:-

भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग।
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग॥

प्रायः हम सभी पहले सीता फिर राम का नाम लेते है पर भारत जी ने यहाँ पहले राम फिर सीता का नाम लिया क्यों? 

भारत जी ने यहाँ पर राम और सीता की एकात्मता का बोध कराया है। राम और सीता ये दो नहीं है बल्कि ये एक ही है। राम कोई और नहीं बल्कि स्वयं परब्रह्म परमात्मा है और सीता माता उनकी स्वरुप भुता माया है इन दोनों में कोई भेद नहीं है। 

दूसरा भाव यह है कि भारत जी के मन में श्रीसिताराम जी से मिलान की उत्कण्ठा इतनी अधिक है की उनको सीता और राम में कोई लौकिक भेद नहीं जान पड़ा और वे प्रेम में उमंगभर कर बस रामसिय-रामसिय कहते हुए चले जा रहे थे।

वास्तव में यह प्रभु के नाम की ही महिमा है जो भारत जी के मुख से सहज ही रामसिय के रूप में प्रकट हुआ।


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