शनिवार, 3 दिसंबर 2016

सर्वोत्तम है मानसी (भावनात्मक) पूजन जाने कैसे?

"जड़ चेतन गुण दोष मय,विश्व कीन्ह करतार।"

मानस में गोस्वामी जी ने कहा है की इस चराचर जगत में जितने भी चैतन्य जीव है या जो जड़ वस्तुवे है उन सभी में कुछ अच्छे गुण है तो कुछ दोष भी व्याप्त है।

मानसी पूजा को हम मानस की इस चौपाई से जोड़ कर देख सकते है। जब हम क्रियात्मक पूजन करते है तो उसमे बहुत से उपचार यथा पंचोपचार, षोडशोपचार इत्यादि करते है जिसमे बहुत से पदार्थ हम भगवान् को अर्पित करते है, परंतु उन पदार्थो में कुछ न कुछ दोष अवश्य होता है।

क्रियात्मक पूजन में हमें भौतिक रूप से उस पदार्थ की आवश्यकता होती है जिसे प्रभु को अर्पण करना है पर यह आवश्यक नहीं की वह पदार्थ हमें सर्व काल उपलब्ध हो, साथ ही धन के आभाव में भी हम उन वस्तुओ को अर्पित नहीं कर पाते।

क्रियात्मक पूजन में अहंकार आने की भी संभावना होती है जो क़ि हमारे पूजन के लिए ठीक नहीं है।

क्रियात्मक पूजन में आने वाली इन सभी बाधाओ को समाप्त कर हमें मानसी पूजा करनी चाहिए। मानसी पूजा का तात्पर्य है मन से भगवान् की पूजा करना। इसमें क्रियात्मक कुछ भी नहीं होता पर साधक अपने साध्य को अपने चित्त में स्थापित कर भावनात्मक रूप से पूजन करता है।

मानसी पूजन के लिए सबसे पहले साधक को अपनी सुविधानुसार स्थान का चयन कर अनुकूल आसन पर बैठ जाना चाहिए। फिर अपने इष्ट का ध्यान करना चाहिए। ध्यान करते समय आप को भगवान् के जिस भी स्वरुप का पूजन करना है उसकी छवि अपने मन में स्थापित कर लेना चाहिए यथा रामजी, श्यामजी, भोलेबाबा, देवीं माँ इत्यादि इसमें भी आप बाल रूप का या युगल छवि का अपनी श्रद्धानुसार ध्यान कर सकते है।

फिर आप को गंगाजी, जमुनाजी, नर्मदाजी, कावेरीजी या अन्य किसी पवित्र नदि जिसके जल से स्नान कराना है आप संकल्प कर उस पवित्र जल से स्नान करा सकते है।

फिर आप वस्त्र आभूषण पहनाइए उसमे भी आप को जिस प्रकार के आभूषण पहनाने की इच्छा हो सोने चांदी हिरे मोति या अन्य रत्न जड़ित वस्त्र आभूषण आप पहना सकते है।

आप को जो दुर्लभ से दुर्लभ पुष्प अर्पित करना हो आप मानसी पूजा में अर्पित कर सकते है चाहे वह नीलकमल हो या स्वर्ग में स्थापित पारिजात या कल्पवृक्ष के पुष्प मानसी पूजा की कोई बाध्यता नहीं है।

फिर आप भगवान् को जिस पदार्थ का भोग लगाना चाहे लगा सकते है।

मानसी पूजा में आप को किसी तीर्थ पर या पूजा स्थान पर जाने की आवश्यकता नहीं है आप अपने साधना में ही उस तीर्थ का स्मरण कर सकते है।

मानसी पूजन क्रियात्मक न हो कर भावनात्मक होती है अतः इसमें लौकिक दिखावा होने की संभावना नहीं होती इसलिए अहंकार भी नहीं आता।

इसमें शारीरिक अक्षमता या आर्थिक विपन्नता किसी भी प्रकार से बाधक नहीं बनती।

इसमें धर्म या जाती का भी कोई भेद भाव नहीं है आप जिस भी धर्म या जाती के हो मानसी पूजा कर सकते है।

मानसी पूजन के लिए कोई काल तिथि मुहूर्त या स्थान चयन की भी आवश्यकता नहीं होती। जहा आप की श्रद्धा जागृत हो उसकी स्थान और समय में आप पूजन कर सकते है।

मानसी पूजन में आप भगवान् के जिस स्वरुप का आनंद लेना चाहते है आप ले सकते है यथा यदि आप को श्री कृष्ण की बाल लीला अधिक भाति हो तो आप भगवान् के बाल स्वरुप का स्मरण कर उनसे कोई सम्बन्ध स्थापित कर सकते है और उनके साथ क्रीड़ा कर सकते है।

इस प्रकार मानसी पूजन में साध्य और साधक के बीच कोई बाधक नहीं होता। मन चंचल होता है आप उसे जिस स्थान पर लगाना चाहे लगा सकते है। जैसा आप करना चाहे भावनात्मक तरीके से कर सकते है। अतः इस दास की माने तो क्रियात्मक पूजन करे इसमें कोई दोष नहीं पर मानसी पूजन करना सर्वोत्तम साधन भगवत प्राप्ति के लिए हो सकता है क्योकि:-

"जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन्ह तैसी।"



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