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गुरुवार, 12 जनवरी 2017

प्रतिकूलता में कैसे करे श्रीराम भक्ति?

अनुकूलता में तो हम भगवान् की भक्ति करते ही है पर यदि परिस्थिति हमारे प्रतिकूल हो तब कैसे करे श्रीराम की भक्ति?

इसके लिए मानस के सुन्दरकाण्ड में गोस्वामीजी ने विभीषण जी की प्रतिकूलता में भक्ति के बारे में लिखा है:-

रामायुध अंकित गृह, सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ, देखि हरष कपिराई॥5॥

जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका पहुचे तब उन्होंने एक महल देखा उस महल में श्री रामजी के आयुध अर्थात धनुष-बाण के चिह्न अंकित थे। उसकी शोभा वर्णन नहीं की जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी के वृक्ष-समूहों को देखकर कपिराज श्री हनुमान्‌जी हर्षित हुए।।

इस दोहे में गोस्वामी जी ने विभीषण जी की प्रतिकूलता में भक्ति या कहे सांकेतिक भक्ति के बारे में बताया है। विभीषण जी के बड़े भाई रावण स्वयं को भगवान् समझता था और सारी प्रजा में भी उसने भगवान् के पूजन भजन पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। विभीषण जी परम राम भक्त थे ऐसे में उन्होंने भगवान् के आयुध के चिन्हों को अपने महल में अंकित कर भगवान् को परम प्रिय तुलसी के वृक्षो को सर्वत्र लगा रक्खा था।

यहाँ विभीषण जी की कुशलता का भी वर्णन है कि यदि हमारे प्रत्यक्ष भजन-पूजन में देश-काल अथवा परिस्थिति अनुसार कोई विघ्न डाले तब हमें परोक्ष रूप से भगवान् की भक्ति करनी चाहिए।



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