हम जो भी धर्म कार्य करते है उसका एक ही उद्देश्य है अपवर्ग की प्राप्ति। अपवर्ग का अर्थ होता है मोक्ष की प्राप्ति।
अपवर्ग का अर्थ है-
"अपगता वर्गः अपवर्गः"
अपवर्ग वह होता है जहाँ कोई वर्ग ना हो। जिस प्रकार संसार कई वर्गों में बटा हुआ है स्त्रि-पुरुष, ब्राह्मण-क्षत्रिय-शूद्र-वैश्य, काला-गोरा, अमीर -गरीब इत्यादि। परंतु अपवर्ग में कोई वर्ग नहीं होता।
दूसरा अर्थ है:-
"पतन फलाशा बंध भय मृत्यु जहाँ पर नाय।
प फ ब भ म रहित सो अपवर्ग कहाय।।"
अपवर्ग का अर्थ है जहा प वर्ग न हो। प वर्ग का मतलब है प फ ब भ म ये पांच वर्ग जहा न आय उसे अपवर्ग कहते है। ये पांच क्या है:-
प:- प का अर्थ है पतन जाहा जाने के बाद पतन ना हो।
फ:- फ का अर्थ होता है फलाषा अर्थात फल की इक्षा।
ब:-ब का अर्थ होता है बंधन अर्थात जहा किसी प्रकार का कोई बंधन ना हो।
भ:-भ का अर्थ है भय अर्थात जहा भय न हो।
म:- म का अर्थ होता है मृत्यु अर्थात जहा मृत्यु का भय न हो।
इस प्रकार जहा पतन, फल की इक्षा, बंधन, भय और मृत्यु न हो उसे अपवर्ग कहते है।
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Bahtreen..sir
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