स्वास्थ्य

पृष्ठ

सोमवार, 16 जनवरी 2017

किन तीन लोगो को प्रिय नहीं बल्कि यथार्थ बोलना चाहिए!!

सचिव, चिकित्सक और गुरु को कभी लोक प्रिय (जो सुनने में अच्छा लगे) वाणी नहीं बोलना चाहिए!!

मानस से सुन्दरकाण्ड में गोस्वामी जी वर्णन करते है:-

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥

विभीषण जी अपने बड़े भाई रावण को समझाते हुए कहते है कि सचिव, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि किसी के भय अथवा कुछ लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं  तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥

दृष्टान्त पर चर्चा का प्रयोजन केवल इतना है की हमें कभी किसी की झूठी प्रसंसा अथवा ऐसी कोई बात जो सामने वाले को सुनाने में तो अच्छी लगे पर उसके हित में ना हो नहीं करनी चाहिए।

आज के समाज में हमें यत्र तत्र बहुत से चाटुकार लोग देखने को मिलते है जो लोगो की झूठी प्रसंसा करके अपना स्वार्थ साध लेते है हमें इन चाटुकार लोगो से बचना चाहिए।

सचिव,  वैध और गुरु को आज के परिवेश में हम सरकारी सेवक, चिकित्सक और शिक्षक के नाम से जानते है। ये तीनो ही किसी समाज के निर्माण में मत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। यदि इनमे से कोई भी अपने कर्तव्य के प्रति सजग नहीं हुए या अपने निजी स्वार्थ के लिए कोई अनुचित व्यवहार अथवा ऐसा कोई भी व्यवहार जिसमे समाज का कल्याण निहित न हो करते है तो क्रमशः उस क्षेत्र के लोगो का सामाजिक, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन प्रभावित होता है।


यह भी पढ़े:-

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें