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गुरुवार, 19 जनवरी 2017

माया क्या है?

माया दो अक्षरो से मिल कर बना है। मा का अर्थ है नहीं और या का अर्थ है जो, अर्थात जो नहीं है वही माया है।

संसार में प्रमुख तीन तत्व होते है ईश्वर, जीव और माया। प्रत्येक जीव का ईश्वर से नित्य भेदाभेद सम्बन्ध है। पर ईश्वर अपनी माया शक्ति से इस सम्बन्ध को छुपा देते है और जीव अज्ञानता से वशिभूत होकर अपने इस सम्बन्ध को भूल जाता है। माया शक्ति का प्रमुख कार्य ही यह है की यथार्थ को छुपा दे और जो बनावटी है उसका हमें दर्शन काराय।

जब तक जीव के आँखों में माया का पर्दा रहता है जीव
भगवान् से अपने वास्तविक सम्बन्ध को भूल कर सांसारिक जीवो से अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और माया जनित इस संसार में सुख ढूँढना चाहता है।

अतः जीव को किसी श्रोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष का सत्संग प्राप्त कर अपने वास्तविक स्वरुप को जानने का प्रयत्न करना चाहिए और उस आनंद-कंद कृष्णचन्द्र भगवान् की नित्य भक्ति कर माया जाल से उत्र्तीण हो कर उस शाश्वत और आनंद स्वरुप भगवान् को प्राप्त कर नित्य शुद्ध बुद्ध हो कर सदा के लिए आनंद स्वरुप हो जाना चाहिए इसी में इस जीव का  वास्तविक कल्याण निहित है।


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