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शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

कामनाये समुद्र की तरंगो की भाँति है!!

एक बार एक आदमी समुद्र स्नान को गया। समुद्र के निकट पहुच कर वह समुद्र की तरफ बड़ा उतने में एक लहर आ गई और वह रुक गया और सोचने लगा की जब लहर शांत हो तो जा कर डुबकी लगाऊ। समुद्र की लहर एक आती और शांत नहीं हो पाती की दूसरी लहर आ जाती। ऐसा देखते देखते बहुत समय बीत गया पर लहरे शांत नहीं हुई। 

तभी वहा से एक संत गुजरे और उस आदमी को देख कर उस से पूछने लगे की तुम यहाँ समुद्र के किनारे क्या कर रहे हो मै बहुत समय से देख रहा हूँ की तुम समुद्र की तरफ बढ़ते हो और फिर वापस आ जाते हो। तब उस आदमी ने बताया की मैं समुद्र स्नान करना चाहता हु पर लहरें शांत नहीं हो रही, ये शांत हो तो डुबकी लगाऊ। इतना सुन कर संत ने कहा की बेटा ये समुद्र की लहरे कभी शांत नहीं होती यदि डुबकी लगानी है तो इन लहरो के साथ ही डुबकी लगानी होगी। तब जा करके उस आदमी ने समुद्र में डुबकी लगाईं।

यही हमारे साथ भी होता है। जिस प्रकार वह आदमी समुद्र में डुबकी लगाना चाहता है उसी प्रकार हम भगवान् की भक्ति तो करना चाहते है पर समुद्र की लहरो की भाँती कामनाओ से घिरे हुए है हमारी एक कामना समाप्त हो नहीं पाती की दूसरी कामना जागृत हो जाती है और हम इसी सोच में पड़े रहते है की बस ये काम पूर्ण हो जाय तो भजन करे पर कामनाये कभी पूर्ण नहीं होती और अपना जीवन व्यर्थ की कामना पूर्ति में समाप्त कर देते है।

यदि कामनाये समाप्त नहीं हो सकती तो करे क्या? हमें संत का आश्रय लेना चाहिए और संत हमें बताएंगे की कैसे हमें संसार में रहते हुए भगवान् की भक्ति करनी है क्योकि संसार में आये है तो दुनिया-दारी तो हमें निभानी पड़ेगी परंतु दुनिया-दारी के चक्कर में भजन को नहीं भूलना चाहिए। संसार के काम भी करो और साथ में भगवान् का भजन भी करो यही दृष्टान्त का भाव है।



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