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सोमवार, 23 जनवरी 2017

मानव देह पंचायती धर्मशाला की भाँति है!!

मानस में गोस्वामी जी लिखते है कि:-

छिति जल पावक गगन समीरा।
पञ्च जनित अति अधम शरीरा।।

यह मानव देह पांच प्रकार के तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से मिलकर बना है। पर यह मानव देह हमारा नित्य घर नहीं है बल्कि यह इन पञ्च तत्वों से बना हमारे लिए एक धर्मशाला की भाँती है जहां एक समय विशेष के लिए जीव उसमे निवास करता है। 

अब यदि कोई जीव इसे अपना नित्य घर समझ ले तो जिस प्रकर धर्मशाळा से एक समय विशेष के बाद वहाँ से हमें बाहर कर दिया जाता है इसी प्रकार हमारा समय पूर्ण होने के बाद हमें भी यमदूत इस शरीर से बाहर निकाल देते है।

तो इस मानव देह को ईश्वर प्राप्ति का साधन समझ कर जब तक यह देह प्राप्त है भगवत प्राप्ति का साधन करना चाहिए और इस शरीर के प्रति कभी भी कोई आशक्ति नहीं करनी चाहिए ताकि जब अंत समय आये तब हम इस शरीर को भगवन्नाम लेते हुए त्याग दे क्योकि ये हमारा नित्य निवास नहीं है जो लोग इसे अपना नित्य निवास समझने की भूल करते है उन्हें शरीर त्याग करते समय बहुत कष्ट होता है।

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