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मंगलवार, 31 जनवरी 2017

श्रीकृष्ण की वेणु (बंसी) का अर्थ क्या है?

द्वापर में जब श्रीकृष्ण ने अवतार लिया तब भगवान् ने नित्य वेणु या बंसी धारण किये। वेणु अर्थान् बंसी का वास्तविक अर्थ है:-

"बम ब्रह्मानंदं इह विषयानंदम  तव अणु यस्मात्"

जिस वेणु के ध्वनि को सुनकर ब्रह्मानंद और विषयानंद अणु के सामान तुक्ष हो जाय उसे वेणु कहते है। संसार में दो प्रकार के आनंद होते है- ब्रह्मानंद, विषयानंद।

विषयानंद सांसारिक सुखो को कहते है जो लौकिक और नश्वर होता है। जबकि ब्रह्मानंद भगवान् के दिव्य आनंद स्वरुप है जो की अलौकिक और अनंत होता है।

वेणु (बंसी) की यह विशेसता यह है की इसकी ध्वनि को सुनकर ब्रह्मानंदि और विषयानंदि दोनों अपना आनंद भूल जाते है।

जब श्रीकृष्ण अपनी बंसी में तान छेड़ते है तब काम में लिप्त कामी पुरुष अपने काम को भूल जाते है और दूसरी तरफ योगीजनो की समाधि भंग हो जाती है क्योकि शंकर भगवान् ही स्वयं बंसी स्वरुप है और श्रीकृष्ण के परम भक्त है अतः बंसी की तान सभी जीवो के भीतर केवल श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और विशुद्ध भक्ति युक्त काम को जाग्रत करने का काम करती है।

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