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मंगलवार, 24 जनवरी 2017

जानिये कैसे एक पुरुष राजा युवनाश्व ने गर्भ धारण किया?

सूर्यवंश में एक महाप्रतापी  राज हुए थे युवनाश्व। राज प्रतापी तो थे पर उनकी कोई संतान नहीं थी। तब राज युवनाश्व अपने गुरु वषिष्ठ के पास गए और महर्षि वषिष्ठ ने एक यज्ञ का आयोजन कराया। 

जब यज्ञ हो रहा था तब एक दिन रात्रि को जब सभी सो रहे थे राज को जोर से प्यास लगी राज ने आस पास देखा और एक यज्ञ का कलश जल से भरा हुआ दिखाई दिया और राज ने उस कलश के पानी को पी लिया।

 दूसरे दिन जब पुनः यज्ञ प्रारम्भ हुआ तब पंडित जी ने देखा की यज्ञ का कलश खाली है तब उनको बहुत चिंता हुई और सभी आपस में विचार करने लगे की अब क्या होगा जब सब से पूछा गया और राज तक बात पहुची तब राज ने बताया की कलश का पानी मैंने पिया है, पर इसमें इतने परेशान होने की क्या बात है। 

तब ऋषियो ने कहा की ये कोई साधारण जल नहीं था मंत्रो से अभिमंत्रित जल था और जो उस जल को पियेगा उसको निश्चित पुत्र की प्राप्ति होगी। अब राज भी चिंतित हो गए पर मंत्रो का प्रभाव निष्फल नहीं किया सकता था अतः राज युवनाश्व गर्भ से हो गए। 

जब गर्भ का समय पूर्ण हुआ तब सभी को चिंता हो गई की अब शिशु को बाहर कैसे निकाला जाय। तब ऋषियो ने राजा की बायीं कुक्षी का भेदन कर शल्य चिकित्सा के द्वारा शिशु को बाहर निकाला गया। 

फिर एक दूसरी समश्या आ गई की बच्चे का लालन पालन कैसे हो तब स्वर्ग के राज इंद्र प्रकट हुए और अपने अंगुली का स्पर्श कराया जिसमे अमृत लगा हुआ था जिसे पी कर शिशु स्वस्थ हो गया और उसका नाम मांधाता पड़ा।

 इस प्रकार प्रकृति विरुद्ध एक पुरुष राजा ने गर्भ धारण कर पुत्र को जन्म दिया।

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