हिन्दू सनातन धर्म में हमने बहुत से पात्रो का अवलोकन किया है परंतु जैसी प्रतिभा हनुमानजी महराज में देखने को मिलती है अन्यत्र किसी में नहीं देखि जा सकती है उसी का उदाहरण श्रीरामरक्षास्तोत्र का यह श्लोक है:-
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।
मानस में भी सुन्दरकाण्ड के मंगलाचरण में गोस्वामीजी लिखते है कि:-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3॥
1 हनुमानजी मन की गति से कही भी आवागमन कर सकतेे है।
2 वायु के सामान उनका वेग है मतलब अत्यंत तीव्र गति से वे चल सकते है।
3 इन्द्रियों पर उनका सम्पूर्ण नियंत्रण है वे इन्द्रियों को जीतने वाले जितेन्द्रिय कहलाते है।
4 बुद्धिमानो में में वे सबसे वरिष्ठ है अर्थात बुद्धिमानो में सर्वश्रेष्ठ है।
5 वानार दल के मुखिया है।
6 बल इतना है की जिसकी तुलना न की जा सके।
7 स्वर्ण के सुमेरु पर्वत की भाँती दिव्य काया है।
8 ज्ञानियो में अग्रगण्य अर्थात अग्रणी है।
9 संपूर्ण गुणों के स्वामी है।
10 वानर समुदाय के के स्वामी है।
10 भक्तो में रघुपति के अत्यंत प्रिय भक्त है।
इस प्रकार हनुमानजी बल, बुद्धि, भक्तो, गुणों और विद्या सभी में श्रेष्ठ है साथ ही वे जितेन्द्रिय है और जो अपने इन्द्रियों को वश में कर ले वही श्रीसीतारामजी का प्रधान सेवक बनने योग्य है।
यह भी पढ़े:-
Jai hanumaan ...
जवाब देंहटाएं