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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

भगवान् के चरणों में साक्षात त्रिवेणी (गंगा,यमुना, सरस्वती) प्रकट होती है जानिये कैसे?

त्रिवेणी कहते है जहाँ तीन नदियाँ आपस में मिले। उदाहरण के लिए प्रयाग जी। प्रयाग संगम में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है अतः उसे त्रिवेणी कहते है।

 उस त्रिवेणी में गंगा जी की धारा का रंग स्वेत है, यमुना जी की धारा श्याम वर्ण है और सरस्वती जी की धारा का रंग लाल वर्ण है। परंतु त्रिवेणी में गंगाजी और यमुना जी तो प्रकट है परंतु सरस्वती जी की धरा लुप्त है वो दिखाई नहीं देती।

प्रयाग जी की ही भाँती भगवान् के चरणों में भी त्रिवेणी है। भगवान् के चरणों में जो तलुवे है उसका रंग है लाल जो की त्रिवेणी में सरस्वती के सामान है, भगवान् के नखो का रंग है सफेद जो क़ि त्रिवेणी के गंगाजी के सामान है और भगवान् के चरण के ऊपर के भाग श्याम वर्ण है जो त्रिवेणी के यमुना जी के सामान है।

 जिस प्रकार सरस्वती जी त्रिवेणी में लुप्त है दिखाई नहीं देती उसी प्रकार भगवान् के श्रीविग्रह में भी उनके चरण के तलुवे भी जमीन में खड़े होने की वजह से दिखाई नहीं देते। केवल जो रसिक भगवान् के भक्त है वे ही उसकी क्षटा ध्यान और समाधि अवस्था में देख पाते है। अतः भगवान् के चरणों में साक्षात त्रिवेणी प्रकट होती है।

इसी कारण स्तुति में भी कहा जाता है "जिन्ह चरणों से निकली गंगा"। गंगा जी को विष्णुपदि भी इसी लिए कहा जाता है।

तुलसीदास जी ने भी गंगा जी की स्तुति में कहा है "बिस्नु-पद-सरोजजासि"।


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