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सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

धर्म अनुष्ठान कब व्यर्थ हो जाते है?

धर्म का उद्देश्य एकमात्र ईश्वर की प्राप्ति होना चाहिए।

दृष्टान्त:- वर कन्या का विवाह हुआ। विवाह कराते समय बहुत व्यवस्थाये हम करते है साज-सज्जा, भोजन व्यवस्था, आतिशबाजी, मेहमान नवाजी इत्यादि। पर उस विवाह का प्रमुख हेतु होता है वर-कन्या के बीच प्रेम स्थापित करना, पर यदि वर कन्या का एक दूसरे के प्रति प्रेम नहीं हुआ तो सारी व्यवस्थाये किस काम की?

इसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा के मिलन के लिए ही विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किये जाते है ताकि अनुष्ठानो और कथाओ के माध्यम से हमारे भगवान् के प्रति प्रीती हो जाय और हम अपने स्वरुप को जान कर उस परमात्मा को प्राप्त कर सके, परंतु यदि अनेक धार्मिक अनुष्ठान कथाओ और यज्ञ आदि करने पर भी हमारी भगवान् से प्रीती नहीं हुई तो ये सारे धर्म-कर्म 'श्रमएव ही केवलं' परिश्रम मात्र है।


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