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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

भगवान् मंत्रो की अशुद्धि को भी शुद्ध कर देते है!! पर कब?


प्रायः हम सभी अपने नित्य कर्म में पूजा-पाठ, मन्त्र-स्तुति, नाम जप इत्यादि करते है। मन्त्र प्रायः संस्कृत में होते है। वर्तमान युग में संस्कृत का ज्ञान बहुत कम लोगो को है पर फिर भी लोग मंत्रो का पाठ करते है। कर्मकाण्ड दो प्रकार से होता है-सकाम और निष्काम।

सकाम मन्त्र जप:- जब हम सकाम मंत्रो का जाप करते है तब हमारे मन में किस अभीष्ट की कामना होती है और उसकी कामना पूर्ति के निमित्त मन्त्र जप किया जाता है। सकाम मन्त्र के जब में यदि कोई त्रुटि हमसे हो जाय तो मन्त्र जाप करने वाले का विनाश का कारण बनती है। मन्त्र जप में यदि किसी एक मन्त्र के एक शब्द के एक अक्षर के एक मात्रा के एक स्वर के उच्चारण में यदि गलती हो जाय तो वह अशुद्ध हो जाता है। अतः जब सकाम जप किया जाय तब बहुत सावधानी के साथ मन्त्र जप करना चाहिए क्योकि वह भगवान् के निमित्त नहीं होता हम अपने निजी स्वार्थ के लिए पाठ करते है।

निष्काम मन्त्र जप:- जब हम निष्काम मन्त्र जप या पाठ करते है तब उसमे हमारा कोई स्वार्थ या कामना नहीं होती। हम जिसभी मन्त्र का उच्चारण करते है उसका एक मात्र उद्देश्य भगवान् के प्रति प्रेम होता है। सम्पूर्ण गतिविधिया भगवान् के प्रति अपनी प्रीती पढ़ाने और उनकी कृपा पात्र बनने के लिए निष्काम जप या पाठ किया जाता है। यहाँ यदि हमसे कोई उच्चारण में त्रुटि हो भी जाय तो भगवान् उसे ध्यान नहीं देते वो केवल हमारे भाव पर ध्यान देते है और अपनी सहज भक्ति देते है। जिस प्रकार माँ-बाप को अपने बच्चे की शिशु अवस्था की तुतलाती जुबान बहुत भाति है उसी प्रकार भगवान् भी हमें अपना शिशु समझकर हमारी तुतलाती जुबान का आनंद लेते है और हमारे अशुद्ध मंत्रो को भी शुद्ध कर देते है। इसलिए कभी भी मंत्रो का पाठ या जप करे तो अपने ज्ञान के अहंकार से ना करे बल्कि एक अबोध शिशु की भाँती भगवान् से प्राथना करे की हे प्रभु आप की कृपा से ही जो कुछ पाया है उसे आप को ही अर्पित करता हु यह भावना रखते हुए मंत्रो का पाठ जप आदि करना चाहिए।

इस प्रकार हमारी भावनाओ के अनुसार भगवान् व्यवहार करते हुए हमारे मन्त्र जप अथवा पूजा पाठ इत्यादि को स्वीकार करते है।

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