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शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध लोहे और चुम्बक की भाँती है।

जीवात्मा और भगवान् के सम्बन्ध को हम लोहा और चुम्बक के दृष्टान्त से समझ सकते है। 

लोहा और चुम्बक ये दो अलग अलग पदार्थ है दोनों के गुण धर्म अलग अलग होते है, पर जब लोहा चुम्बक के संपर्क में आता है तो चुम्बक लोहे को अपनी तरफ खिंच लेता है, परंतु लोहा विशुद्ध होना चाहिए उसमे किस प्रकार का कोई आवरण या विकार नहीं होना चाहिए वरना चुम्बकीय शक्ति उनती प्रभावी नहीं रहती और यदि बहुत ज्यादा अशुद्ध लोहा हो तो वह चुम्बक के तरफ आकर्षित ही नहीं होगी। केवल शुद्ध लोहा ही तुरंत चुम्बक की तरफ खिंच जाता है।

ऐसा ही सम्बन्ध जीवात्मा और परमात्मा का है। जीवात्मा है लोहा और परमात्मा है चुम्बक। भगवान् के गुण, रूप, लीला, धाम, परिकर आदि चुम्बकीय शक्ति की भाँती लोहे रुपी जीवात्मा को अपनी तरफ खींचते है, यदि जीवात्मा विशुद्ध है, सभी प्रकार के दुर्विकारो से रहित है तो वह तुरंत भगवान् की तरफ खिंच जाता है।

पर यदि जीवात्मा में काम क्रोध आदि दुर्विकार थोड़े बहुत विधमान है अर्थात  थोड़ी अशुद्धि है तो भी वह खिंचेगा पर थोड़ा समय लगेगा संत का सत्संग करना पडेगा और अपने दुर्विकार दूर करने होंगे तब कही जा कर धीरे से चुम्बकीय शक्ति अपना काम करेगी।

यदि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, अज्ञान, आदि अनेको दुर्विकारो का कपड़ा पड़ा हुआ है तो वहां पर भगवान् की कृपा रुपी चुम्बकीय शक्ति अपना काम नहीं करती और जीवात्मा भगवान् की तरफ नहीं खिचता और चौरासी लाख योनियो में भटकता रहता है।

अतः जीव को आवरण रहित होना चाहिए किस भी प्रकार के दुर्विकार से बचना चाहिए तभी भगवान् उसे अपनी तरफ खीच कर अपनी भक्ति प्रदान करते है। मानस में भी गोस्वामी जी ने संकेत किया है:-

निर्मल मन जन सो मोहीं भावा।
मोहे कपट छल छिद्र न भावा।।

जीवात्मा का मन निर्माल होना चाहिए उसमे किसी प्रकार की कपट छल आदि दुर्विकार नहीं होने चाहिए उसी जीव को भगवान् अपना अनुग्रह प्रदान करते है।


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