श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार भगवान् श्रीहरि नारायण ने ब्रह्मा जी को सृष्टि रचना का क्रम बताया है जिसके अनुसार सृष्टि के आदि में केवल भगवान् नारायण ही थे अन्य कोई नहीं था, न ही कोई तत्व था न कोई पदार्थ था जिस से सृस्टि की रचना की जा सके और न ही कोई बनाने वाला था।
तब प्रश्न यह उठता है की इस सृष्टि की रचना कैसे हुई?
तब प्रश्न यह उठता है की इस सृष्टि की रचना कैसे हुई?
किसी भी रचना के लिए दो तत्व आवश्यक होते है- निमित्त और उपादान। निमित्त कहते है बनाने वाले को और उपादान कहते है बनने वाले को।
उदाहरण से देखे तो जैसे मिटटी का घड़ा, मिट्टि के घड़ा बनाने में मिट्टी उपादान कारण है और कुम्हार निमित्त कारण है इन दोनों के द्वारा ही घड़े का निर्माण संभव है।
संसार में कुछ ऐसे भी उदाहरण है जिसमे एक ही तत्व निमित्त कारण भी है और उपादान कारण भी है। उदाहरण से देखे तो मयुर का पंख। मयुर के पंख का निमित्त और उपादान दोनों कारण मयुर ही है। दुसरा उदाहरण है मकड़ी का जाला। मकड़ी के जाले में भी निमित्त और उपादान कारण मकड़ी ही है।
जिस प्रकार मयुर के पंख और मकड़ी के जाले का अभिन्न निमित्तोउपादांन कारण मयुर और मकड़ी है अर्थात मयुर और मकड़ी ही क्रमशः पंख और जाला बनते है और बनाते भी है।
उसी प्रकार इस सम्पूर्ण सृष्टि के भी रचना के अभिन्न निमित्तोउपादांन कारण भगवान् ही है। सृष्टि के आदि में न तो कोई पदार्थ था न कोई बनाने वाला अतः भगवान् ही बने और भगवान् ने ही बनाया है इस सम्पूर्ण सृष्टि को। इसलिए भगवान् अणुचित और विभुचित दोनों है। चाहे तो वो सुक्ष्म से सुक्ष्म हो जाय और चाहे तो सर्वथा व्यापक हो जाय।
गोस्वामीजी ने इसी लिए भगवान् की व्यापकता के लिए कहा है:-
सियराम मय सब जग जानि।
करहु प्रणाम ज़ोरी जग पानी।।
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।।
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