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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

सुख-दुःख से कैसे बचे?

संसार में प्रत्येक जीव के जीवन में सुख और दुःख दो प्रकार की अवस्थाएं आती है। किसी के जीवन में सुख की अधिकता और किसी के जीवन में दुःख की अधिकता। सुख में अधिक प्रसन्न नहीं होना चाहिए और दुःख में ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए। पर मनुष्य की यही प्रवृत्ति है की वह सुख में सुखी और दुःख में दुखी हुए बिना नहीं रह सकता । यह मानव प्रवृत्ति है जो इन दोनों अवस्थाओ को सहज ही हमारे स्वभाव में प्रकट कर देता है। 

अब प्रश्न यह उठता है की हम ऐसा क्या करे की सुख में अधिक प्रसन्न न हो और दुःख में शोक न करे?

इसके लिए हमें अपने अंतर्मन में दो बातें बैठानी होगी। पहली यह की जब हम सुख को प्राप्त करते है तो वास्तव में हमारे पुण्य कर्मो का क्षय होता है और जब दुःख हमारे जीवन में आता है तब हमारे पाप कर्म समाप्त होते है। अतः सुख में यह समझकर की हमारे पुण्य कर्म समाप्त हो रहे है अधिक आनंद नहीं करना चाहिए और दुःख में यह सोच कर संतोष करना चाहिए की हमारे पाप कर्म समाप्त हो रहे है। इन दो बातो को यदि हम अपने जीवन में आत्मसात करे तो एक संतुलित जीवन व्यतीत कर सकते है।

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