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रविवार, 12 मार्च 2017

होली में गुलाल लगाने की परंपरा कब शुरू हुई?

हमारे सनातन हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा को होली का त्यौहार मनाया जाता है। होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारो में से एक है जिसे सम्पूर्ण भारत वर्ष में विभिन्न नामो और अलग अलग तरीको से मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रमुख रूप से दो दिन का होता है। पहला दिन जो क़ि फाल्गुन पूर्णिमा का होता है इस दिन रात्रि में बुराई के प्रतिक होलिका का दहन किया जाता है और दूसरे दिन फाग या रंगो के माध्यम से उत्सव मनाया जाता है।

प्रायः होली के इस उत्सव में हम रंग, गुलाल, अबीर आदि का प्रयोग करते है। पर ये रंगो की परंपरा प्रारम्भ कब हुई ?

द्वापर में भगवान् श्रीकृष्ण का अवतरण इस धरा धाम में हुआ था। भगवान् श्रीकृष्ण का बचपन गोकुल और  वृन्दावन की गलियो में बीता। माता यसोदा ने उनका लालन पालन किया। गोकुल के निकट ही बरसाना नाम का एक स्थान है जहाँ भगवान् ने अपनी प्रेम शक्ति के रूप में श्रीराधा अवतार लिया था। एक बार श्रीकृष्ण माता यसोदा से कहने लगे की हे मैया मेरा रंग काल और राधा का रंग गोरा क्यों है। तब मैया यसोदा ने इसके कई कारण गिनाए और अंत में कहा क़ि इस वर्ष जब होली का उत्सव मनाया जायगा तब तुम राधा पर रंग-अबीर लगाना तो उसका भी रंग तुम्हारे ही सामान साँवला हो जाएगा। 

तब माता की आज्ञा अनुसार श्रीकृष्ण ने होली उत्सव में सभी गोपियों को रंग अबीर गुलाल आदि के प्रयोग से रंग दिया। तब से श्रीराधाकृष्ण के विशुद्ध प्रेम को प्रतिकात्मक रूप से मनाया जाने लगा और होलीका दहन के दूसरे दिन गुलाल आदि रंगो का प्रयोग उत्सव मनाने के लिए किया जाने लगा। ब्रज क्षेत्र में आज भी होली का यह उत्सव पुरे बसंत पर्यन्त मनाया जाता है। होली में रंग, अबीर, गुलाल आदि के साथ साथ फूलो और लट्ठ मार होली भी मनाई जाती है।

होली का यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है अतः इस पर्व का हेतु केवल बुराई का त्याग होना चाहिए ना क़ि त्यौहार के आड़ में किस प्रकार की बुराई को जन्म देना। होली का यह त्यौहार प्रेम और सद्भावना का त्यौहार है अतः सभी को प्रेम का यह त्यौहार शान्ति और सद्भावना पूर्ण तरीके से मनाना चाहिए इसी में इस पर्व की सार्थकता है।

लेख:- पं. आशुतोष चौबे
         बिलासपुर (छ. ग.)
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