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मंगलवार, 14 मार्च 2017

भक्त चावल के भात के सामान है जाने कैसे?

संत भक्तो की तुलना भात से करते है। भात के बनने में और भक्त के बनने में क्रियात्मक समानताये होती है। जिस प्रकार भात बनाने से पहले धान को पहले कुटा जाता है और धान की भूसी और चावल अलग अलग किया जाता है। फिर चावल को गर्म पानी में पकाया जाता है और जब तक वह पक न जाय पानी में उसे उबाला जाता है। चावल पका है या नहीं इसके लिए उसके दाने को दबा कर देखते है और यदि थोड़ी भी कठोरता उसमे रहे तो और पकाया जाता है। फिर जब एक निश्चित परिमाण में भात पाक जाता है तब उसे सिद्ध मान लिया जाता है।

इसी प्रकार माया जनित जीव भी धान की भाँती होता है। जब जीव भगवान् के गुण रूप लीला धाम आदि की श्रवण मनन और चिंतन करता है तब धीरे धीरे उसके काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार धान की की भूसी की भाँती अलग हो जाता है। फिर जिस प्रकार चावल को गरम पानी के संपर्क में लाया जाता है उसी प्रकार जीव जब संत के सानिध्य में आता है तब जिस प्रकार गरम पानी चावल को पका देती है उसी प्रकार संत भी हमारे दुर्विकारो को दूर करते है और हमें हर प्रकार की कसौटी में कस कर देखते है की हमारे मन में किसी प्रकार की कोई विकार शेष तो नहीं फिर जब हमारा मन उस भात की भाति कोमल हो जाता है तब जीव वास्तविक भक्त की श्रेणी में आता है और भगवान् की भक्ति और भगवद् आनंद प्राप्त कर पाता है।

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