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शुक्रवार, 17 मार्च 2017

भगवान् कहाँ है?

हमारे धर्म शास्त्रो में भगवान् के सर्वव्यापकता को बताया गया है यथा:-

"एकं खलमिदं ब्रह्म"
"सर्वं विष्णुमयं जगत"
"हरिव्यापक सर्वत्र समाना"
"सियराम मय सब जग जानि"

आदि अनेक ऐसे उदाहरण मिलते है जिसमे भगवान् को जड़-चेतन स्थूल-सुक्ष्म सभी में व्याप्त बताया गया है। अब प्रश्न यह उठता है की यदि भगवान् सर्वत्र व्याप्त है तो वो दिखाई क्यों नहीं देते? हम अपने इन्द्रियों से उनका रूप रस स्पर्श गंध और स्वर का अनुभव् क्यों नहीं कर पाते?

संत निर्णय करते है कि ईश्वर सभी जगह व्याप्त है पर उनको जीव माया से ग्रसित होने के कारण नहीं जान पाता। माया का अर्थ है-"मा" मतलब नहीं और "या" मतलब जो अर्थात जो नहीं है उसको दिखाना या दूसरे शब्दों में कहे जो वास्तव में है उसे छुपाना यही माया का काम है। अतः माया जनित होने के कारण जीव भगवान् के उस व्यापकता का अनुभव नहीं कर पाता, उनके वास्तविक स्वरुप को नहीं जान पाता।

तो क्या कोई भी भगवान् को नहीं देख सकता या कोई भी भगवान् का अनुभव नहीं कर सकता?

मानस में गोस्वामीजी  संकेत करते है की "जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरति तिन्ह देखही तैसी"  अर्थात भगवान् को जीव जिस स्वरुप से भजे भगवान् उसको उसी स्वरुप में प्राप्त हो जाते है।

 दूसरा संकेत गोस्वामीजी करते है की "हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होहि मै जाना।" भगवान् सभी जगह व्याप्त है यह बात तो ठीक है पर वो प्रकट कैसे होते है तो गोस्वामीजी कहते है की जहा भक्त के ह्रदय में भगवान् के प्रति प्रेम जागृत हुआ भगवान् वही प्रकट हो जाते है।

भगवान् के प्रकट होने के अनेक दृष्टान्त मिलते है यथा:-

 भक्त प्रह्लाद का प्रेम ही था जो भगवान् जड़ खम्भ से प्रकट हो गए, द्रोपती ने अपनी लाज बचाने को पुकारा तो भगवान् ने वस्त्रावतार धारण कर लिया जो भगवान् की जड़ वस्तुवों में व्यापकता को दर्शाता है। 

भगवान् ने धरणी अर्थात पृथ्वी को हिरण्याक्ष के द्वारा जलमग्न करने पर वाराह अर्थात शूकर रूप धारण किया और पृथ्वी को जल के बाहर पुनः अपने स्थान में स्थापित किया, महाराज सत्यव्रत और सप्तऋषि सहित समस्त जीवो के बीज की रक्षा के लिए भगवान् ने मत्स्य अवतार धारण किया, विशाल मंदराचल को पीठ पर धारण कर भगवान् ने कच्छप अवतार में समुद्र मंथन करा कर देवताओ के कार्य सिद्ध किये ये सभी भगवान् के जन्तु योनियो की व्यापकता को दर्शाता है।

गजेन्द्र ने आर्ध भाव से भगवान् की स्तुति की भगवान् तुरंत गरुणारुण हो कर आये और ग्राह से उसकी रक्षा की।

कपिल, वेदव्यास और नारद रूप में भगवान् ने ऋषि कुल में अवतार धारण किये।

पृथु के और श्रीराम राम रूप में भगवान् के अवतार हुए जिसमे उन्होंने राजा बन कर राज्य किया और एक आदर्श स्थापित किये।

भगवान् ने वामन रूप में राक्षस कुल में जन्मे राज बाली का उद्धार किया।

श्रीकृष्ण रूप में भगवान् साक्षात प्रेम स्वरुप प्रकट हुए और सभी कलाओ से पूर्ण हो कर धरती में विभिन्न लीलाए की।

कलियुग में भी तुलसी, सूरदास, मीरा आदि अपने अनन्य भक्तो को भगवान् ने दर्शन दिए है।

इस प्रकार भगवान् जहा उसके भक्त की निष्ठा बलवती हुई बस वही अपने भक्त के प्रेम के सामने विविध रूपो में प्रकट होते है। इसलिए कहा गया है की "जहॉ भक्त की हाँ भगवान् वहां"। भक्त यदि सच्चे मन से भगवान् को पुकारे तो भगवान् जड़-चेतन किसी भी जीव-जंतु से प्रकट हो जाते है। 

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