हमारे सनातन हिन्दू धर्म में चैत्र शुल्क प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता है। इसे नव संवत्सर, हिन्दू नववर्ष, गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामो से सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है। आइये जाने क्यों चैत्र शुल्क प्रतिपदा को ही हमारा हिन्दू नव वर्ष मनाया जाता है?
1 सबसे पहला कारण है की ब्रह्म पुराण के अनुसार श्रीहरि नारायण की प्रेरणा और कृपा प्राप्त कर ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी। काल गणना के अनुसार सनातन धर्म में चार युग बताये गए है जिसमे सत्ययुग पहला युग है जिसकी शुरुवात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होती है। अतः इस दिन को ही सृष्टि का प्रथम दिवस माना जाता है और नूतन संवत्सर प्रारम्भ किया जाता है।
2 त्रेतायुग के रामायण काल में श्रीराम का राज तिलक कर इसी दिन उन्हें राज बनाया गया था और राम राज्य इस धरती पर स्थापित हुआ था।
3 द्वापर में धर्मराज युधिस्ठिर को इसी दिन राजा बनाया गया था। युधिस्ठिर ने युगाब्द ( युधिस्ठिर संवत) का प्रारम्भ भी इसी दिन से की थी।
4 कलियुग में उज्जयिनी (वर्तमान उज्जैन) के राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ इसी दिन से किया था।
5 महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन किया गया था।
6 शक्ति की उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ भी इसी दिन से होता है। ऐसा माना जाता है की नव दिन माता की पूजन करने से वर्ष भर जीवन शक्ति का क्षय नहीं होता है।
इस प्रकार चारो युगों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही नव वर्ष मनाया जाता है।
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