दक्ष का शिवजी से बैर- शिव पुराण के अनुसार भगवान् शिवजी के ससुर थे महाराजा दक्ष जिनकी पुत्री सती के साथ उनका विवाह हुआ था। दक्ष को जब प्रजापति का पद ब्रह्माजी ने प्रदान किया तब उसने एक सम्मान समारोह आयोजित किया जिसमे सभी देवी देवता को आमंत्रण दिया गया। उस समारोह में भगवान् शंकर भी आमंत्रित थे। जब समारोह में दक्ष का आगमन हुआ तब सभी देवी देवताओ ने खड़े हो कर उसका सम्मान किया पर शिवजी खड़े नहीं हुए। जिसपर दक्ष को अपना अपमान महसूस हुआ। क्योकि उस समय उसे अपने पद का अहंकार था साथ ही उसे यह लगा की यह मेरी बेटी का पति है मेरा दामाद है अतः इस नाते भी इसे खड़े हो कर मुझे सम्मान देना चाहिए था। इसी दिन से दक्ष ने भगवान् शंकर से वैनमस्य रखने लगा।
दक्ष यज्ञ- एक बार दक्ष के मन में यह विचार आया की एक यज्ञ किया जाय जिसमे सभी देवी देवताओ को तो यज्ञ का भाग मिले पर शंकर के लिए कोई भाग न हो ताकि उस से अपने अपमान का बदला लिया जा सके। अतः दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे सारे देवी देवताओ को आमंत्रण दिया गया पर शिवजी और सती को आमंत्रण नहीं दिया गया। जब माता सती को यह बात पता चली तब उन्होंने भगवान् शंकर से यज्ञ में चलने के लिए आग्रह करने लगी। पहले तो शिवजी मना करने लगे पर जब सती ने बहुत आग्रह किया तब उन्होंने सती को तो भेज दिया पर स्वयं उस यज्ञ में नहीं गए।
सती का देह त्याग- सती जब यज्ञशाला पहुची तब उनका वहा कोई सम्मान और आदर नहीं किया गया बल्कि बिना आमंत्रण पर आने के लिए उनका परिहास किया गया। फिर जब यज्ञ का भाग देने का समय आया तब सभी देवी देवताओ को भाग दिया गया पर शिवजी को यज्ञ का भाग नहीं दिया गया साथ ही दक्ष ने शिवजी के लिए अपमानजनक शब्द कहने लगा। भगवान् शंकर के अपमान से आहत होकर माता सती ने योग अग्नि से अपने देह को जला दिया और अपने शारीर का त्याग कर दिया। जब यह बात शिवजी को पता चली तब वे वीरभद्र सहित अपने अन्य गणों को भेज कर दक्ष के यज्ञ को विध्वंश करा दिया।
शक्तिपीठो की स्थापना- फिर शिवजी को सती के देह त्याग से बड़ा क्षोभ व मोह हुआ। वे सती के उस जलते हुए देह को लेकर यत्र तत्र विचरने लगे। भगवान् विष्णु ने शिवजी के इस मोह की शान्ति और साधको के कल्याण के लिए सती से शव को अपने सुदर्शन से खण्डित कर भिन्न भिन्न स्थानों में गिरा दिया। सती के शरीर खण्ड जिन स्थानों में गिरे वहां वहां शक्तिपीठो की स्थापना हुई।
शक्तिपीठो के नाम एवम स्थान- शक्तिपीठो की संख्या 51 है। आइये जाने ये शक्ति के नाम क्या है और किन स्थानों में स्थापित है:-
शक्तिपीठो के नाम एवम स्थान- शक्तिपीठो की संख्या 51 है। आइये जाने ये शक्ति के नाम क्या है और किन स्थानों में स्थापित है:-
1 हिंगुला - बलूचिस्तान (पाकिस्तान)।
2 महालक्ष्मी - कोल्हापुर।
3 विंध्यवासिनी - मिर्जापुर जिले में।
4 पटनेश्वरी - पटना।
5 विश्वमुखी - जालंधर।
6 ज्वालामुखी - कांगड़ा।
7 दुर्गा देवी - बांसवाड़ा।
8 गुह्येश्वरी - काठमांडू (नेपाल)।
9 दाक्षायणी - मानसरोवर (तिब्बत)।
10 विमला - जगन्नाथपुरी।
11 गण्डकी - मुक्तिनाथ (नेपाल)।
12 नयना देवी - नैनीताल।
13 भूतधात्री - वर्धमान।
14 भवानी - चटगाँव।
15 त्रिपुरसुन्दरी - त्रिपुरा।
16 भ्रामरी - जलपाईगुड़ी।
17 कामाख्या - गौहाटी।
18 मीनाक्षी - मदुरै।
19 कालिका - कलकत्ता।
20 ललिता - प्रयागराज।
21 जयंती - शिलोंग।
22 पद्मावती - तिरुपति।
23 विशालाक्षी - वाराणसी।
24 ब्रह्मकला - त्रिचिरापाल्ली।
25 गायत्री - पुष्कर।
26 सावित्री - कुरुक्षेत्र।
27 भ्रमराम्बा - श्रीशैलम।
28 देवगर्भा - कांची।
29 राधाजी - बरसाना।
30 नर्मदा - अमरकंटक।
31 शारदा - मैहर।
32 कात्यायनी - वृन्दावन।
33 वाराही - पंचसागर हरिद्वार।
34 नारायणि - कन्याकुमारी।
35 अपर्णा - बंगलादेश।
36 श्री सुन्दरी - आसाम।
37 योगमाया - दिल्ली।
38 अम्बिका - गिरनार।
39 हरसिद्धि - उज्जैन।
40 भद्रकाली - नासिक।
41 पाटेश्वरी - गोरखपुर।
42 भीमा देवी - कोयंबटूर।
43 उमा - जनकपुर।
44 अर्बुदा - माउंटआबू।
45 चामुण्डा - मैसूर।
46 कन्याकुमारी - तमिलनाडु।
47 उग्रतारा - सुनन्दा नदी के तट पर।
48 पुल्लरा देवी - लामपुरं।
49 हिम शक्तिपीठ - अमरनाथ कश्मीर।
50 इंद्राक्षी - लंका।
51 विश्वेशी - गोदावरी के तट पर।
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