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शनिवार, 4 मार्च 2017

भगवान् के खिलौने कौन है?

मान सम्मान के चक्कर में जीव को नहीं पढ़ना चाहिए क्योकि इसके चक्कर में आकर हम अपने वास्तविक स्वरुप को भूल कर भगवान् से विमुख हो जाते है:-

मान बड़ाई जब से आई, तब से किस्मत फूटी।
स्वामी स्वामी भजने लागे, लगन राम से छुटी।।

दृष्टान्त से यदि देखे तो माँ और बच्चे का दृष्टान्त यह समझने के लिए उपयुक्त है। माँ अपने शिशु को देख कर ममता वश अपने पास बुलाती है, पर यदि बच्चा खेलने में व्यस्त है तब वह माँ की तरफ नहीं देखता, माँ समझ लेती है की बालक को अभी खेलने में मस्त है और माँ अपने कार्यो में लग जाती है।

दूसरी तरफ जब माँ व्यस्त हो और बालक माँ की आवश्यकता महसूस करे तब माँ व्यस्तता के कारण पहले उसे कुछ खाने या खेलने को खिलौने देती है ताकि बच्चा उसमे बहल जाए और माँ अपना काम कर ले, बच्चा यदि उस खिलौने अथवा खाद्य पदार्थ को लेकर उसमे मस्त हो जाए तब उसे फिर माँ की याद नहीं आती और वह उन खिलौनों में ही आनंद का अनुभव करने लगता है।

 पर यदि बच्चा माँ के उस खाद्य और खिलौने का त्याग कर दे और अपनी माँ के लिए रुदन करने लगे तब माँ समझ जाती है कि अब बच्चे को उसकी परम आवश्यकता है और माँ सभी काम छोड़ कर बच्चे को गोद में उठा लेती है।

इसी प्रकार जीव बच्चा है और भगवान् माँ है। जब तक जीव अपने में व्यस्त है भगवान् जीव की तरफ वात्सल्य भाव से देख कर बस आनंद लेते है। जब जीव भगवान् की तरफ अभिमुख होता है अर्थात उसे जब उस बच्चे की भाँती अपनी माँ स्वरुप भगवान् की याद आती है  तब भगवान् जीव को उस माँ की भाँती खिलौने देकर बहलाते है। भगवान् जीव को खिलौने की भाति मान-सम्मान, धन-दौलत आदि दे कर बहलाते है और यदि जीव इस मान सम्मान के चक्कर में पड़ गया तो फिर वह
उस बच्चे की भाँति उस खिलौनों में बहल जाता है और उसे भगवान् रुपी माँ की विस्मृति हो जाती है और कहा तो भगवान् की तरफ अभिमुख था, वह दुनिया दारी के चक्कर में भटक कर रह जाता है।

पर यदि जीव भगवान् के दिए मान सम्मान धन दौलत
रुपी खिलौनों के चक्कर में न पड़के भगवान् के लिए बच्चे की भाँती रुदन करता है तब भगवान् भी उस माँ की भाँती जीव को अपनी परम आवश्यकता जान कर
अपने गोद में बिठा लेते है और उस जीव को माँ की भाँती दुलार कर उसका कल्याण कर देते है। 

संसार के सभी सुख, मान-सम्मान भगवान् के खिलौने है जिसे दे कर भगवान् हमें बहलाते है और यदि जीव इस चक्कर में पड़ा तो भटक जाता है और जो नहीं पड़ता वह निश्चित ही अपना आत्म कल्याण कर लेते है।


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