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गुरुवार, 18 मई 2017

चारो युग कहाँ स्थापित होते है!!

हम सभी चार युग-सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग से भली भाँति परिचित है। ये एक समयावधि होती है जब तक इन युगों का प्रभाव होता है। मानस में गोस्वामी जी ने भी चारो युगों के प्रभाव को बताया है की सत्ययुग में ध्यान से, त्रेता में यज्ञ से, द्वापर में पूजन से और कलियुग में श्रीराम नाम से जीव मात्र का कल्याण होता है।

वस्तुतः ये लक्षण युगों में पृथक पृथक बताया गया है। परंतु भावनात्मक दृष्टि से यदि देखे तो हर मनुष्य के जीवन में ये चारो युगों का निवास होता है। जब हम भगवान् के ध्यान में अपने चित्त को स्थापित करते है तब हमारे जीवन में सत्ययुग का प्रादुर्भाव होता है। जब हम भगवान् के निमित्त यज्ञ आदि कर्म करते है तब हमारे जीवन में त्रेतायुग का प्रादुर्भाव होता है। जब हम भगवान् का पूजन करते है तब हमारे जीवन में द्वापरयुग का प्रादुर्भाव होता है। जब हमारे जीवन में भगवन्नाम संकीर्तन आता है तब वास्तव में हम कलियुग में निवास करते है। परंतु इन चारो आचरणों को करने वाले लोग इस कलियुग में बहुत विरले है। इस युग में तो कलियुग के दूसरे लक्षण से संपन्न लोगो की बाहुल्यता है यथा कलह, ईर्ष्या, द्वेष, मद, मात्सर्य आदि। जब इस तरह के प्रवृत्ति हमारे आचरण में आती है तब हमारा जीवन कलियुग के दुःस-प्रभाव से ग्रसित हो जाता है। अतः यदि मनुष्य चाहे तो किसी भी युग में किसी भी जन्म में अपनी भाव वृत्तियों के आधार पर अपने जीवन में सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुग के लक्षण युक्त प्रभावो को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।

1 टिप्पणी:

  1. इस पोस्ट में जो युगों की जानकारिय दी गई, और उनके प्रभावों को समझाया गया है वह बहुत ही रोचक है, आप से अनुरोध हे की आप इस प्रकार की ज्ञानवर्धक लेख पोस्ट करते रहा करे | Talented India News App

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