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गुरुवार, 3 नवंबर 2016

जाने हवन यज्ञ के प्रकार, यज्ञ फल एवं नियम?

यज्ञ के प्रकार:-

साधारणतः नौ कुण्डीय यज्ञ अधिक किये जाते है। जो निम्न प्रकार है:-

1  चतुरस्र कुण्ड (पूर्व में) - सर्व सिद्धि दायक है।

2  योनि कुण्ड (अग्निकोण में) -  पुत्र दायक।

3  अर्द्ध चंद्र कुण्ड (दक्षिण में)  -  सुखमय जीवन दायक।

4  त्रिकोण कुण्ड (नैऋत्य कोण में)  -  शत्रुनाशक है।

5  वृत्त कुण्ड (पश्चिम में)  -  शान्तिदायक है।

6  षड्स्त्र कुण्ड ( वायव्य कोण में)  -  मृत्यु दायक व विजयदायक है।

7  पद्म कुण्ड ( उत्तर में) - तांत्रिक प्रभावो से मुक्ति।

8  अष्टोस्त्र कुण्ड ( ईशान में)  -  रोग नाशक है।

9  आचार्य कुण्ड ( मध्य में )  -  सर्वकामना सिद्धिदायक है।


यज्ञ से जुडी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां:-

1  प्रत्येक कुण्ड में तीन तीन मेखला होती है। ऊपर की मेखला का रंग सफ़ेद, मध्य की लाल व नीचे की मेखला का रंग काल होता है।

2  धर्मोपार्जित धन को ही यज्ञ में लगाना चाहिए।

3  सिले वस्त्र पहनकर यज्ञ करना वर्जित है।

4 प्रज्वलित अग्नि में ही आहुति देनी चाहिए।

5  शाकल्य में तिल की ही अधिकता होनी चाहिए। जौ की अधिकता से दरिद्रता आती है। चावल की अधिकता से रोग आता है।

6 मंत्र शुद्ध होने चाहिए।

7 हवन की समिधा एवं अन्य पदार्थ शुद्ध होने चाहिए।

8 हवन जिस स्थान में किया जा रहा हो वह भी शुद्ध होना चाहिए।

9 बाह्य और अंतःकरण की शुद्धि के बाद ही यज्ञ करना चाहिए।


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