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मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

भगवान् परशुराम ने काटा था गणेश जी का एक दाँत!!

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार भगवान् परशुराम अपने इष्ट भगवान् शंकर के दर्शन करने कैलाश गए। कैलाश में भगवान् शिव माता पार्वती के साथ उनके अंतःपुर में विराजमान थे और माता पार्वती को श्रीराम कथा-रस का पान करा रहे थे। कथा में व्यवधान न हो इसके लिए उन्होंने अपना दिव्य त्रिशूल गणेश जी प्रदान कर द्वार पर खड़ा कर दिया और आदेश दिया की किसी को भी भीतर नहीं आने देना। 

परशुरामजी कैलाश पहुच कर सीधे भगवान् शंकर के दर्शन के लिए कैलाश द्वार से प्रवेश करने लगे। द्वार पर नन्दी श्रृंगी आदि शिवगणों से उनकी भेंट हुई। परशुराम ने उनसे शिवजी के बारे में पूछा की इस समय वे कहा है। पर नंदी आदि ने कहा की उन्हें इस बात का कोई ज्ञान नहीं है कि शिवजी कहाँ है और न ही उन्होंने कुछ बताया है क़ि वे कहाँ जा रहे है। 

इस पर परशुरामजी ने नन्दी आदि शिवगणों पर क्रोध करते हुए कहा कि तुम्हे यह तक नहीं पता कि इस समय तुम्हारे आराध्य कहा है ऐसे में तो तुम सब शिवगण कहलाने लायाक नहीं हो। परशुराम जी ने शिवगणों पर क्रोध किया और स्वयं शिवजी को ढूंढने कैलाश में प्रवेश कर गए।

बहुत ढूंढने के बाद भी भगवान् शंकर कही नहीं मिले। अंत में एक अंतःपुर दिखाई पड़ा जहा द्वार पर एक विचित्र बालक प्रहरा दे रहा था। परशुरामजी उस अंतःपुर के निकट पहुचे और द्वार पर प्रवेश करने लगे। तब गणेशजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया और कहने लगे की यहां प्रवेश करना वर्जित है।

परशुरामजी ने कहा की तुम कौन हो जो मुझे इस तरह यहाँ रोकने का दुःसाहस कर रहे हो। गणेश जी ने कहा की तुम कौन हो जो इस तरह अंतःपुर में बिना आज्ञा के प्रवेश किये जा रहे हो। इतने में नंदी आदि शिवगण वहा आ गए और उन्होंने परशुरामजी को बताया की ये गजमुख माता पार्वती के पुत्र गणेश जी है, साथ ही गणेश जी से कहा की ये परशुधारी भगवान् शिव के भक्त परशुराम है। 

परशुराम जी ने कहा की ये विचित्र बालक जिसका मुख गज का है और बाकी का शरीर इंसान का कैसे पार्वती पुत्र हो सकता है और गणेश जी का उपहास करने लगे। तभी गणेशजी ने भी परशुराम का उपहास करते हुए कहा की तुम देखने में तो ब्राह्मण लगते हो पर तुम्हारे हाथो में कमंडल की जगह ये परशु क्यों है। इस प्रकार दोनों में बहुत वाद विवाद हुआ और तभी परशुराम जी ने कहा की भक्त और भगवान् ले बीच में कोई दूरी नहीं होना चाहिए और हठ पूर्वक पुनः अंतःपुर में प्रवेश करने लगे। 

इतने में गणेशजी ने शिवजी द्वारा प्रदत्त त्रिशूल को परशुराम जी के सामने कर उन्हें युद्ध के लिए सावधान किया। उधर परशुराम ने भी अपना परशु तान कर चुनौती स्वीकार की और दोनों के बीच भयानक युद्ध प्रारम्भ हो गया। कभी परशुराम गणेशजी पर भारी पड़ते तो कभी गणेशजी परशुराम पर। युद्ध के समय दो बार गणेश जी ने  परशुराम जी को धरती पर गिरा दिया। इस पर परशुराम जी ने गणेशजी की प्रसंसा भी की।

फिर गणेश जी ने शिवजी का नाम लेकर परशुराम जी को अपनी सूँड में लपेट लिया और तीनो लोकों की परिक्रमा करा दी और वापस ला कर धरती पर पटक दिए। इस बात पर गणेशजी और बाकी के नन्दी आदि शिवगण परशुराम जी की इस दशा पर हँसने लगे। तभी परशुराम जी ने खुद को सम्भाला और अपने परशु से एक जोर का प्रहार गणेश जी पर किया तो उनका परशु सीधे जा कर गणेश जी की दाँत पर लगा और उनके एक दांत का आधा हिस्सा कट गया और जमीन पर जा गिरा। 

गणेशजी की जोर से चींख निकल गई। उनके इस चींख को सुन कर अंतःपुर से भगवान् शिव और माता पार्वती दोनों वहा पर आ गए। माता पार्वती ने जब गणेश जी की दशा को देखा तब वे क्रोध से भरी हुई नन्दी आदि गणों से पूछने लगी की गणेश की यह दशा किसने की है। नन्दी आदि ने सारा वृत्तांत माता पार्वती को बताया की गणेशजी की यह दशा परशुराम जी ने की है। माता पार्वती ने परशुराम जी पर क्रोध किया और उन्हें जला कर भस्म कर देने की बात की। तभी भोले नाथ ने उन्हें रोका। इतने में परशुराम भी अपने क्रोध से बहार आ कर माता पार्वती से अपने इस कृत्य के लिए क्षमा याचना करने लगे।

अंत में भगवान् शंकर के समझाने पर माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने परशुराम जी को क्षमा कर दिया। इस प्रकार भगवान् परशुराम जी का गणेश जी के साथ युद्ध हुआ और उन्होंने गणेशजी का एक दांत अपने परशु से काट दिया जिसके कारण गणेशजी का एक नाम एकदन्त पड़ा।

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