स्वास्थ्य

पृष्ठ

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

भगवान् परशुराम का जन्म कैसे हुआ?

श्रीपरशुराम भगवान् का संक्षिप्त परिचय

वन्दना:-

"ॐ जमदग्न्याय विद्महे, महावीराय धीमहि।
तन्नो परशुराम: प्रचोदयात।"



भगवान् के अवतार:- भगवन परशुराम श्रीहरि नारायण के अवतार है। श्रीहरि ने अपने छठा आवेशावतार भगवान् परशुराम के रूप में लिया। भगवान् ब्राह्मण क़ुल में जन्म लेकर क्षत्रियो सा आचरण किये और ऐसे क्षत्रिय जो अपने बल और पराक्रम के मद में चूर होकर साधारण प्रजा का शोषण करते थे उनका संघार किया।

माता-पिता:-आपकी माता का नाम रेणुका और पिता परम तेजश्वी जमदग्नि ऋषि थे।

प्राकट्य:- भगवान् परशुराम का प्राकट्य भृगु वंश में ऋषि जमदग्नि और रेणुका के यहाँ वैशाख शुक्ल तृतीया, पुनर्वाशु नक्षत्र, मिथुुुुन राशि में राहु, छः ग्रह अपने उच्च स्थान पर थे तब रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ। 

भाई:- इनके चार बड़े भाई थे- रुक्मवान, सुखेण,  वशु, विश्वानस।

परशुराम जी की जन्म कथा:- भगवान् परशुराम रामायण काल के ऋषि है। प्राचीन काल की बात है कन्नौज राज्य में एक गाधि नाम का राजा राज्य करता था। राजा की एक अत्यंत सुन्दर कन्या थी। कन्या का नाम सत्यवती था। राजा गाधि ने अपनी कन्या का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र ऋचीक मुनि से कर दिया। 

पुत्र के विवाह संपन्न होने के बाद महर्षि भृगु अपने पुत्रवधु को आशीर्वाद देने पहुचे। भृगु जी ने सत्यवती से वरदान माँगने को कहा। सत्यवती अपने ससुर भृगु जी को प्रसन्न देख अपनी और अपनी माता के लिए पुत्र प्राप्ति का वरदान माँगा। 

भृगु जी ने अपनी पुत्रवधु को पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हुए दो चारु पात्र दिया और कहा की तुम और तुम्हारी माता ऋतू स्नान करने के बाद पुत्र प्राप्ति की इच्छा ले कर तुम गूलर के वृक्ष का और तुम्हारी माँ पीपल के वृक्ष का आलिंगन करना फिर इस चारु पात्र को सावधानी से अलग अलग सेवन करना तो अवश्य ही तुम दोनों को पुत्र की प्राप्ति होगी।

इधर जब सत्यवती ने अपनी माता से सारी बात बताई तब उनकी माता के मन में विकार उत्पन्न हो गया। उनको लगा की भृगु जी ने अपनी पुत्र वधु को उत्तम संतान के लिए कुछ विशेष पात्र दिया है ऐसा मन में विचार कर उसने चारु पात्र बदल दिया। इसप्रकार सत्यवती ने अपनी माँ का चारु ग्रहण किया।

थोड़े काल के बाद पुनः भृगु जी का आगमन हुआ और सत्यवती को देखते ही उन्होंने साड़ी बात अपने दिव्य दृष्टि से जान गए। उन्होंने सत्यवती से कहा क़ि हे पुत्री तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल किया है। उसने तुम्हारा चरुपात्र स्वयं ग्रहण कर तुम्हे अपना चरु दे दिया। सत्यवती घबरा गई और भृगुजी के चरणों में गिर कर इसके परिणाम के बारे में पूछने लगी। 

भृगुजी बोले की हे पुत्री तेरी माता ने तेरा चरु ग्रहण किया है अतः उसकी संतान क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मणों सा व्यवहार करेगी। और तुमने अपनी माँ का चरु ग्रहण किया है अतः तुम्हारी संतान ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियो सा व्यवहार करेगी।

सत्यवती इस बात को सुनकर अत्यंत दुखी हुई और भृगु जी से निवेदन करने लगी। इस पर भृगुजी ने कहा की मेरा वचन निष्फल नहीं हो सकता। तब सत्यवती ने कहा की हे ऋषि श्रेष्ठ आप सर्व समर्थ है आप मेरे पुत्र को ब्राह्मणों सा व्यवहार वाला प्रदान कीजिये भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय के सामान आचरण वाला हो। भृगु जी ने ऐसा ही हो कहते हुए आशीर्वाद दिया और वहा से चले गए।

कालान्तर में ऋचीक मुनि और सत्यवती का एक अत्यंत तेजस्वी बालक हुआ जिनका नाम हुआ जमदग्नि। जमदग्नि का विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका जी से हुआ और भृगु जी के वचन के अनुसार उनको पांच पुत्रो की प्राप्ति हुई जिसमे सबसे छोटे पुत्र भगवान् के आवेशावतार भगवान् परशुराम हुए। जो ब्राह्मण कुल में जन्म लेते हुए भी क्षत्रियो सा तेज और बल रखते थे। 

प्रमुख नाम:- बचपन में इनका नाम था राम। भृगु वंश में जन्म होने के कारण भार्गव कहलाये। जमदग्नि के पुत्र जामदग्न्य कहलाये। भगवान् शिव के द्वारा प्रदत्त परशु धारण किया अतः परशुराम कहलाये।

शिक्षा:- परशुरामजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा और वेद अध्ययन अपनी माता से प्राप्त की। किशोरावस्था में उन्होंने भगवान् शंकर की कठिन साधना की जिससे शिवजी प्रसन्न होकर उन्हें धनुर्विद्या में पारंगत किया और एक परशु तथा अपना पिनाक धनुष प्रदान किया।

प्रकृति प्रेम:- परशुराम जी को प्रकृति और जीव जन्तुवो से अत्यंत प्रेम था। कहा जाता है की वे जीव-जन्तुओ से बातें किया करते थे और उनकी भाषा भी समझते थे।

पितृ भक्ति:- एक बार की बात है उनकी माता उनके पिता जमदग्नि ऋषि के यज्ञ के लिए जल लेने गई थी वहा उन्होंने एक गन्धर्व को अप्सराओ के साथ जलविहार करते देखा और वापस आने में उन्हें देर हो गई। तब जमदग्नि ऋषि ने अपने तपोबल से यह बात जान ली और अपने पुत्रो को अपनी माता का गला काटने कहा पर चारो पुत्रो ने मना कर दिया। जमदग्नि ऋषि ने अपने चारो बड़े पुत्रो को चेतना हीन कर दिया।

 अंत में परशुरामजी आये और उन्हें जब उनके पिता ने माता का गला काटने कहा तो बिना प्रश्न किये अपनी माता का गला काट दिया। उसके बाद पिता के प्रसन्न होने पर पुनः अपने माँ का जीवन वापस मांग कर अपनी मातृ भक्ति का परिचय दिया।

अमरत्व का वरदान:- भगवान् परशुराम के पिता ने उन्हें उनकी पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान दिया है।

पिता की मृत्यु का प्रतिशोध:- सहस्त्रार्जुन ने एक बार ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आ कर उनकी कामधेनु गाय को छल से अपने साथ ले गया साथ ही ऋषि जमदग्नि की ह्त्या कर दी जिसके बदले में भगवान् परशुराम ने सहस्त्रार्जुन के हजारो भुजाओ को काट काट कर अलग कर दिया और अंत में उसका वध करके अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लिया।

हैहयवंश का विनाश:- जन मानस में एक भ्रान्ति है की भगवान् परशुराम क्षत्रिय विरोधी है। पर यह बात गलत है भगवान् परशुराम ने केवल हैहयवंश के ही क्षत्रियो का नाश किया है। उन्होंने 21 बार उस वंश के राजाओ का वध कर पृथ्वी कश्यप जी को दान कर दी थी।

प्रमुख शिष्य:- भगवान् परशुराम के प्रमुख शिष्यो में पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य और दान वीर कारण जैसे महा योद्धा शामिल है।

रामजी द्वारा मान भंग:- सीता स्वयंबर के समय जब श्रीराम ने शिवजी का धनुष भंग किया तब उसके कठोर ध्वनि के कारण परशुराम जी की तपस्या भंग हो गई और वे स्वयंबर के स्थान में पर पहुचे। वहां उनका विवाद लक्ष्मणजी से हुआ और अंत में श्रीराम जी ने उन्हें अपने वास्तविक स्वरुप का ज्ञान करा कर उनका क्रोध और अहंकार को नष्ट किया।

वर्तमान निवास:- चूँकि भगवान् परशुराम ने यह सारी पृथ्वी कश्यपजी को दान कर दी थी अतः वे पृथ्वी पर रात्रि विश्राम नहीं करते। उनका वर्तमान निवास चारो तरफ से समुद्र से घिरे महेन्द्र पर्वत पर है जहॉ वे तपस्या में लीन है।

कलियुग में भूमिका:- कलियुग जब अपने चरम में होगा तब भगवान् विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे, उस समय भगवान् परशुराम उन्हें वेद का अध्ययन कराएंगे और उन्हें एक तलवार प्रदान करेंगे जिससे कल्कि रूप में भगवान् सारे आताताइयो का नाश कर सत्ययुग की स्थापना करेंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह।।
    सर आज का ज्ञान सार पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा।
    वर्तमान निवाश और कलयुग में भूमिका बहुत ही सुन्दर अद्भुत है।

    जवाब देंहटाएं