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रविवार, 5 मार्च 2017

मन को भगवान् की तरफ कैसे मोड़े?

मन बहुत चंचल होता है बहुत जल्दी कही लगता नहीं है। हम भगवान् की तरफ अपने मन को मोड़ना तो चाहते है पर मुड़ता नहीं है। आइये एक दृष्टान्त से समझे:-

लोहा से बहुत से हथियार या सामान आदि बनाया जाता है। लोहा जब ठोस अवस्था में होता है तब उस से कोई भी अन्य आकृति बनाना आसान नहीं होता। उसे आकृति देने के लिए सबसे पहले लोहे को तपाया जाता है लगातार ताप देने से वह लोहा अत्यंत गर्म हो कर द्रवीभूत हो जाता है फिर उसे मन चाही आकृति दे दी जाती है।

इसी प्रकार यह मन भी लोहे की ही भाँती अत्यंत कठोर होता है जल्दी भगवान् की तरफ नहीं मुड़ता मन को भी प्रभु की तरफ मोड़ने के लिए लोहे की भाँती द्रवीभूत करना पड़ता है, मन द्रवीभूत होता है भगवान् के गुणानुवादो से मन को बार बार भगवान् के गुण, लीला, धाम, परिकर, संत आदि की बातें सूना सूना कर इसे कोमल बनाना चाहिए जब मन प्रभु के स्वरुप को पहचान कर उनको पाने के लिए अत्यंत व्याकुल हो जाए तब मन पर विवेक का हथौड़ा मारना चाहिए और भगवान् की तरफ मन को मोड़ देना चाहिए। एक बार जब मन भगवान् की तरफ मुड़ जायगा तब संसार छोड़ना नहीं पड़ता वह अपने आप छुट जाता है।

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