हम प्रायः मंदिरो अथवा अपने घरो में पूजन के समय एक श्लोक सुनते है:-
विष्णुपादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ||
यह श्लोक भगवान् के चरणोदक ग्रहण करने का है अर्थात जब पंडित जी या कोई पुजारी भगवान् को स्नान करा कर उनका चरणामृत हमें देते है तब यह श्लोक बोला जाता है। इस श्लोक में अकाल मृत्यु से रक्षा की बात कही गई है। अर्थात भगवान् के नित्य चरणोदक पान करने से जीव को अकाल मृत्यु नहीं आती और साथ ही समस्त प्रकार के आधि-व्याधि का नाश हो जाता है और मनुष्य फिर मोक्ष को प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्कर से छुट जाता है।
अतः जहा कही भी भगवान् का चरणोदक दिया जा रहा हो श्रद्धा से उसका पान करना चाहिए। घर में भी नित्य बालगोपाल अथवा शालिग्राम के रूप में भगवान् को विराजमान कर स्नान काराय और उनके चरणोदक का पान करे। चरणोदक के साथ तुलसी का दल अथवा मंजरी अवश्य ग्रहण करें। इससे निश्चित अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
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