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शनिवार, 18 मार्च 2017

भगवान् के दर्शन किसे पहले होंगे, ये कोई नहीं जानता!!

भगवान् के दर्शन किसे पहले हो जाए कोई नहीं जानता। मानस के बालकाण्ड के विवाह प्रसंग में गोस्वामीजी वर्णन करते है:-

"एक सखी सिय संगु बिहाई। गई रही देखन फूलवाई।
तेहि दोऊ बंधु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पाहि आई।।"

मिथिला में जब जानकीजी अपने सखियो के साथ गौरी पूजन करने जा रही थी तब उनकी सखियो में से एक सखी सीताजी का साथ छोड़ कर पुष्प वाटिका देखने चली गई, उधर श्रीराम भी आने अनुज लक्ष्मण के साथ पुष्प वाटिका पहुचे और उस सखी ने श्रीराम के सबसे पहले दर्शन किये। सखी ने जाकर जब यह बात सीताजी को बताई तब जानकीजी सहित अन्य सखियो को श्रीराम के दर्शन हुए।

कहाँ तो जानकी जी सखियो के साथ गौरी पूजन को जा रही थी, तो सबसे पहले उन्हें दर्शन होना था पर दर्शन किसे हुआ जो जानकी जी का साथ छोड़ वाटिका देखने गई।  इस प्रकार भगवान् के दर्शन किसे पहले हो जाए ये कोई नहीं जान सकता।

अन्य उदाहरण:-

विश्वामित्रजी इतने तेजश्वी ऋषि थे की उनके पास दूसरी सृष्टि करने की क्षमता आ गई थी। ऐसे विश्वामित्र जी जंगल में भटकते रहे और गृहस्त राजा दशरथ जी को पुत्र रूप में श्रीराम मिल गए और विश्वामित्र को यज्ञ रक्षा के लिए जब दशरथ जी ने श्रीराम को दिया तब विश्वामित्र को श्रीराम के दर्शन हुए।

श्रीराम जब वन को गए तब सारे ऋषि-मुनि अपनी अपनी कुटिया और आश्रम को सजाने सवारने लगे ताकि प्रभु पहले उन्हें दर्शन देने आये पर श्रीराम सबसे पहले भील कुल में जन्मी माता शबरी को दर्शन देने गए।

दृष्टान्त का तात्पर्य केवल इतना है की भगवान् वन में मिलेंगे या घर बैठे मिल जाएंगे, भगवान् मंदिरो और तीर्थाटन करते मिलेंगे या घूमते फिरते मिल जाएंगे, भगवान् धनवान को पहले मिलेंगे या निर्धन को, भगवान् ज्ञानी को मिलेंगे या अज्ञानी को यह कोई नहीं जानता। 

अतः कभी भी अपने पूजन-भजन का आडम्बर नहीं करना चाहिए बस भगवान की सतत निष्काम भक्ति यह सोच कर करते रहना चाहिए की जब उनकी कृपा और अनुग्रह होगा हमें भगवान् अवश्य मिलेंगे।



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