शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

शिखा क्यों धारण करनी चाहिए?

शिखा शरीर के सर्वाधिक मर्म स्थान (दशम द्वार) का प्रकृति प्रदत्त कवच है।

शिखा के नीचे बुद्धिचक्र और ब्रह्मरंध्र होता है।

सूर्य हमारी जीवनी शक्ति का मुख्या स्रोत है शिखा सूर्य की किरणों से शक्ति  को  खिचता है जिस से शरीर की सारी ग्रंथियों को बल मिलता है और शरीर निरोगी रहता है।

सुषुम्ना नाड़ी से जो बालो के द्वारा तेज निकलता है उसे रोकने के लिए शिखा बंधन किया जाता है।

वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका कारण है कि हमारे सिर में बीचों बीच सहस्राह चक्र होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।

बल, आयु, तेज व बुद्धि की वृद्धि के लिए शिखा का होना परम आवश्यक है।

शिखा अग्नि का चिन्ह है।

श्री प्राप्ति के लिए शिखा धारण करना अनिवार्य है।

स्नान, दान, जप, हवन आदि में शिखा बंधी होनी चाहिए।

भोजन, लघुशंका, दीर्घशंका, मैथुन, व मुर्दा ढोते समय शिखा खोल देनी चाहिए

शिखा बंधन का मंत्र ॐ चिद्रुपिणी महामाये दिव्य तेजः समन्विते । तिष्ठ देवी शिखा मध्ये तेजो वृधिं कुरुष्व मे॥
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