सनातन हिन्दू धर्म से धर्मोपार्जित धन को पांच प्रकार से विभाजित करके खर्च करना बताया गया है:-
यश:- दूसरा भाग अपनी यश के वृद्धि के लिए करनी चाहिए। यथा कुआँ तालाब विश्रामालय मंदिर इत्यादि का निर्माण कराना चाहिए।
अर्थ:- धन का तीसरा हिस्सा अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ाने में खर्च करना चाहिए ताकि आय का स्रोत बना रहे।
काम:- धन का चौथा हिस्सा अपने कामनाओ अर्थात जो अपने आजीविका के लिए आवश्यक हो उन कामनाओ यथा भोजन शयन परिवार का पालन पोषण इत्यादि में करना चाहिए।
स्वजन:- धन का पाँचवा हिस्सा अपने सगे संबंधियो रिश्तेदारो मित्रो अतिथियों के लिए खर्च करना चाहिए।
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