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रविवार, 8 जनवरी 2017

भगवान् की सबसे बड़ी शक्ति क्या है?

भगवान् की सबसे बड़ी शक्ति है अकारण करुणा करना। भगवान् बिना किसी प्रयोजन या स्वार्थ के चराचर के सभी जीवो पर करुणा करते है

भगवान् अकारण करुणा करते है इस तथ्य को यदि दृष्टान्त से समझना कहे तो मानस के बालकाण्ड में गोस्वामीजी वर्णन करते है कि जब विश्वामित्र श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाइयो को यज्ञ रक्षा के लिए महाराज दशरथ से मांग कर ले जा रहे थे तब एक आश्रम दिखाई दिया।

आश्रम एक दीख मग माही। खग मृग जीव जंतु तँह नाही।।
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी।।

 वह आश्रम ऐसा था की वहां कोई भी जीव जंतु पशु पक्षी नहीं था। केवल एक पत्थर की शिला थी जिसे देख कर श्रीराम ने जिज्ञासावश ऋषि विश्वामित्र से पूछा की यह आश्रम किसका है और ये शिला किसकी है तब मुनि ने विस्तार पूर्वक सभी कथा कही।

गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुवीर।।

विश्वामित्र ने कहा की यह आश्रम गौतम ऋषि का है और पत्थर की शिला और कोई नहीं बल्कि गौतम पत्नी अहिल्या है जो पति के श्राप के कारण शिला स्वरुप हो गई है। विश्वामित्र जी ने बड़े ही भाव पूर्वक कहा की हे राम ऋषिपत्नी आपकी चरण की धूलि चाहती है आप इस पर कृपा करे और अहिल्या का उद्धार करे।

अब प्रश्न ये उठता है की जिसपर किस की नजर नहीं पड़ी उस पर श्री राम की नजर क्यों पड़ी?

मनुष्यो की तो छोडो जिसको जीव जंतु तक ने त्याग दिया था उसका उद्धार श्री राम ने क्यों किया?

अहिल्या के उद्धार का प्रयोजन क्या था?

इन सभी बातो का उत्तर गोस्वामी जी ने इस दोहे में दिया:-

अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल।
तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल।।

गोस्वामी जी कहते है की प्रभु श्रीरामचन्द्र जी इतने दीनबंधु है की वे बिना किसी कारण के ही दया करने वाले है। भगवान् की सबसे बड़ी शक्ति है अकारण करुणा। भगवान् ये नहीं देखते की की कोई किस जाती धर्म संप्रदाय का है, कोई ऊँच है या नीच, छोटा है या बड़ा, भगवान् दींन से दींन और पतित से पतित का भी उत्थान करने वाले है इसी लियी भगवान् को दीनबंधु और पतितपावन कहते है। भगवान् बिना किसी प्रयोजन के जीव पर कल्याण करते है।

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