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सोमवार, 26 दिसंबर 2016

चोर से कैसे ब्रह्मऋषि बने वाल्मीकि?

वाल्मीकि जी के बारे में ऐसा कहा जाता है की वे एक लुटेरे थे। रास्ते में जो भी मिलता उसे लूट लेते थे और मार भी देते थे। एक बार संजोगवश वहां से देवर्षि नारद गुजर रहे थे तब वाल्मीकि ने उन्हें भी लूटना चाहा तब देवर्षि ने कहा कि तुम क्यों लूट मार करते हो? यह तो बड़ा पाप है।

 वाल्मीकि ने कहा कि मैं अकेला थोड़े ही हूँ घरवाले सभी मेरी कमाई खाते है, तो पाप भी सभी को लगेगा सब मेरे पाप के भागीदार बनेंगे। 

देवर्षि ने कहा भाई पाप करने वाले को ही पाप लगता है दुसरो को नहीं। सुख के, पूण्य के और धन के भागीदार बनने को सभी तैयार होते है पर पाप का भागीदार कोई नहीं बनना चाहता। ऐसा करकर देवर्षि ने वाल्मीकि से कहा कि यदि तुम्हे मेरी बात का भरोसा न हो तो जा कर अपने घर वालो से पूछ कर आओ।

 वाल्मीकि अपने घर चला गया और जा कर अपनी माँ से पूछा तब माँ ने कहा कि मैंने तुझे पाल पोश कर बड़ा किया है अब अब इस उम्र में भी तू हमें पाप ही देगा क्या? 

वाल्मीकि ने कहा कि मै आप लोगो के लिए ही तो पाप करता हूँ। 

सब घर वालो ने फिर कहा क़ि हम तो तेरे पाप के भागीदार नहीं बनेंगे। घरवालो के ऐसे वचन सुन कर वाल्मीकि को वैराग्य हो गया और वह जा कर नारद जी के चरणों में गिर गया और बोला कि हे देवर्षि पाप का भागीदार बनने को कोई भी तैयार नहीं है।

 देवर्षि ने कहा क़ि यही बात मैं तुम्हे समझाना चाह रहा था की पाप का भागी केवल पाप करने वाला होता है दूसरा कोई नहीं। अब तुम भजन करो भगवान् का नाम लो तो तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे और ऐसा कहकर देवर्षि ने राम नाम रुपी महामंत्र वाल्मीकि को दिया।

 वाल्मीकि का पाप कर्म इतना अधिक था की वह राम नाम का उच्चारण नहीं कर पाया बल्कि राम के स्थान पर मरा मरा मरा कहने लगा। तब देवर्षि ने कहा की तुमने इतने पाप किये है की तुम राम नाम भी सही ढंग से नहीं ले पा रहे हो पर तुम भावना सहित मरा मरा ही बोलो।

वाल्मीकि मरा मरा नाम का जाप करने लगे और जैसे जैसे मन्त्र का उच्चारण करते गए उनके अंतःकरण की शुद्धि होती गई और एक समय के बाद राम राम का जाप होने लगा और नाम जप की महिमा ऐसी हुई की कहाँ चोरी डकैती करने वाला वाल्मीकि आगे चल कर ब्रह्म ज्ञानी हुआ और सर्व प्रथम रामायण को गीतबद्ध कर लिखा और आदि कवि कहलाय।

मानस के बालकाण्ड में गोस्वामी जी ने आदि कवि वाल्मीकि के लिए लिखा है क़ि:-

"जान आदिकवि नाम प्रतापु।
भयउ सुद्ध करी उलटा जापू।।"

"उलटा नामु जपत जगु जाना।
वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना।"

तो इस प्रकार पापी से पापी व्यक्ति भी जो राम नाम का उच्चारण भी नहीं कर सकता नारद जैसे सदगुरु का आश्रय ले कर राम नाम रुपी महामंत्र का जप कर पाप मुक्त हो ब्रह्मज्ञानी बन जाता है ऐसे राम नाम का उच्चारण नित्य प्रति करना चाहिए।



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