बुधवार, 23 नवंबर 2016

स्वर्ण (सोने) में कलि (कलियुग) का वास है या भगवान् का!!!

श्रीमद्भागवत पुराण में कथा आती है की राज परीक्षित ने कलि (कलियुग) को निवास के लिए चार स्थान वैश्य गमन, मांस-मदिरा सेवन, जीव हिंसा और जुआ दिए थे। इन स्थानों को प्राप्त कर कलि बहुत निरास हुआ और राजा परीक्षित से बोला की हे राजन आपने जितना स्थान मुझे दिया है वो सभी ऐसे स्थान है जहा केवल गलत प्रवित्ति के लोग रहते है और इन स्थानों को लोग घृणा की दृष्टि से देखते है आप कृपा करके मुझे एक उत्तम स्थान और प्रदान करे। तब राजा परीक्षित ने कलि से कहा की तुम अपनी इच्छा अनुसार एक स्थान मांग लो। तब कलिने स्वर्ण में निवास माँगा। तो इस प्रकार स्वर्ण में कलि का निवास हुआ। परंतु भगवान् ने स्वयं कहा है की धातुओ में मेरा वास स्वर्ण में है।

अब प्रश्न यह उठता है की हम स्वर्ण में कलि का वास माने या भगवान् का?

संत निर्णय करते है कि गलत तरीके से प्राप्त किया गया स्वर्ण अर्थात अधर्म के रास्ते से कमाया गए स्वर्ण में तो कलि का वास होता है। परंतु धर्मोपार्जित धन से लिए गए स्वर्ण में भगवान् का वास होता है।
जब कभी भी स्वर्ण ले अपनी मेहनत के कमाय गय पैसे से ले और लेने के बाद उसे भगवान् को अर्पित कर दे उसके बाद भगवद् प्रशाद स्वरुप उस स्वर्ण को ग्रहण करने से उसमे किसी प्रकार का दोष नहीं रह जाता।




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